दबाव शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द ‘स्ट्रिक्टस’ से हुई है, जिसका अर्थ होता है-तंग या संकुचित होना। दबाव एक बहुआयामी प्रक्रिया है जो व्यक्ति के मूल्यांकन के बाद उसके प्रति की गयी एक तरह की प्रतिक्रिया है।
दबाव को मुख्य रूप से दो प्रकारों ‘यूस्ट्रेस तथा डिस्ट्रेस’ में बाँटा जाता है, परन्तु इसके अलावा दबाव के कारणों के आधार पर दबाव के अन्य महत्वपूर्ण प्रकार निम्नलिखित हैं –
1. भौतिक एवं पर्यावरणीय दबाव: पर्यावरणीय दबाव से आशय पर्यावरणीय स्रोत से उत्पन्न होने वाले तनाव से है। मनुष्य को अनेक पर्यावरणीय दबाव जैसे-प्रदूषण, तूफान, बाढ़ या अकाल आदि से उत्पन्न दबावों का सामना करना पड़ता है। यह दबाव अत्यन्त तीव्रता वाले होते हैं। ये अचानक घटित होते हैं और व्यापक व दीर्घकालिक प्रभाव डालने वाले होते हैं। उदाहरण-जैसे तूफान व चक्रवात से उत्पन्न प्रतिबल। इनकी अनुक्रिया सार्वभौमिक होती है। ये एक ही समय में कई लोगों को प्रभावित कर सकते हैं।
2. मनोवैज्ञानिक दबाव: यह दबाव का वह प्रकार है, जिसकी उत्पत्ति में व्यक्ति की अपनी प्रतिकूल जैविक दशाओं, कुंठाओं, द्वंद्वों एवं व्यक्तित्व संरचना आदि मनोवैज्ञानिकों कारकों का हाथ होता है। ये दबाव वैयक्तिक होते हैं। उदाहरण-जब व्यक्ति अपने निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर पाता है, तो उसके अंदर कुंठा की भावना प्रवेश करती है। यह कुंठा ही व्यक्ति के मन में प्रतिबल उत्पन्न करती है।
3. सामाजिक दबाव: इस दबाव की उत्पत्ति का स्रोत सामाजिक दशाएँ व परिवर्तन होते हैं। सामाजिक दबाव के अन्तर्गत दैनिक जीवन में घटित होने वाली उलझनों से उत्पन्न तनाव को रखा जाता है तथा बीमारी, विवाह-विच्छेद, तनावपूर्ण सम्बन्ध एवं प्रतिकूल पड़ोसी आदि से उत्पन्न दबाव को सामाजिक दबाव के अन्तर्गत रखा जाता है।
उदाहरण:
इसमें दैनिक जीवन की उलझनों; जैसे-घर-परिवार की देखभाल, खाना खिलाना-बनाना आदि से यद्यपि उग्र स्तर का दबाव तो उत्पन्न नहीं होता है। परन्तु यह व्यक्ति के मन में हल्का तनाव, चिड़चिड़ापन व खीज पैदा करती है। यह दबाव उच्च दबावयुक्त घटनाओं व कारकों की तुलना में अधिक विनाशकारी होता है।