इस चिकित्सा में सेवार्थी के व्यक्तिगत अनुभवों तथा स्वतन्त्र विचारों पर बल दिया जाता है तथा उसे नियंत्रित स्वतन्त्रता देकर रोग निदान तथा नयी जीवन-शैली की तलाश का मौका दिया जाता है। अस्तित्ववादी मनुष्य के अस्तित्व के सार से सम्बन्धित है।
इस चिकित्सा विधि के अनुसार व्यक्ति के मानसिक रोगों का कारण उसका अकेलापन, अन्य लोगों से खराब सम्बन्ध तथा अपने जीवन के अर्थ को समझने में अयोग्यता आदि है। इस विचारधारा के अनुसार मनुष्य व्यक्तिगत संवृद्धि एवं आत्मसिद्धि की इच्छा तथा संवेगात्मक रूप से विकसित होने की सहज आवश्यकता से अभिप्रेरित होते हैं।