‘शरीर भाषा’ से अभिप्राय उस भाषा से है, जिसके अन्तर्गत व्यक्ति अपने शारीरिक अंगों की सहायता से अन्य व्यक्तियों में सूचनाओं का संचार करता है। सम्प्रेषण में व्यक्ति सिर्फ भाषा का ही प्रयोग नहीं करता है बल्कि उसके अलावा वह अन्य अशाब्दिक व्यवहारों का भी प्रयोग करता है। जैसे-शारीरिक मुद्रा, स्वर का उतार-चढ़ाव आदि का प्रयोग किया जाता है। अशाब्दिक संचार का यह तत्व सम्प्रेक्षक द्वारा दिखाए गए शारीरिक स्थिति, शारीरिक मुद्रा, हाव-भाव, शारीरिक गति एवं विभिन्न संकेतों से भी होता है। शरीर भाषा का अध्ययन करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कोई भी एक अवाचिक संकेत अपने आप में सम्पूर्ण अर्थ नहीं रखता है।