स्वतंत्रता - प्राप्ति के बाद के पहले के दो दशकों में सिनेमाघर में फिल्म दिखाने से पहले नियमित रूप से अस्पृश्यता, बाल - विवाह, विधवा बहिष्कार जैसी सामाजिक कुरीतियों व जादू - टोना और विश्वासचिकित्सा जैसे अंधविश्वासों के विरुद्ध लड़ने के लिए डॉक्यूमेन्ट्री फिल्में दिखाई जाती थीं। दूसरे, सरकार द्वारा किये जाने वाले विकास कार्यक्रमों को दिखाया जाता था। तीसरे, अनेक वृत्तचित्र उस शहर की किसी निजी कम्पनी या जानी - मानी दुकान के भी होते थे। ऐसे विज्ञापन उन उत्पादों का प्रचार करते थे जो उस निजी कंपनी या दुकान द्वारा बनाए जाते थे। चौथे, राजनीतिक दल अपने दल का प्रचार करने एवं वोट माँगने हेतु भी इन वृत्त चित्रों का प्रयोग करते थे। पाँचवें, आने वाली फिल्मों के टेलर भी वृत्तचित्रों के रूप में लोगों को दिखाए जाते थे ताकि वे उनके बारे में जान सकें।