समाज में होने वाले सामाजिक आंदोलन की विशेषता निम्न प्रकार से है –
1. सामूहिक प्रयत्न: किसी भी आंदोलन को सामाजिक आंदोलन उसी समय कहा जाएगा जब उसमें समाज के अनेक व्यक्ति सम्मिलित हों। एक, दो या कुछ व्यक्तियों द्वारा समाज में सुधार लाने के प्रयासों को सामाजिक आंदोलन नहीं कहा जा सकता।
2. संकट अथवा समस्या: जब समाज में कोई ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिसे लोग और अधिक सहन नहीं कर सकते तो उसे हटा देने तथा उसके स्थान पर नयी व्यवस्था लाने के लिए सामाजिक आंदोलन किया जाता है।
3. अनौपचारिक संगठन: प्रत्येक सामाजिक आंदोलन का एक अनौपचारिक संगठन होता है। इस संगठन के द्वारा ही आंदोलन के लक्ष्यों को प्राप्त करने की योजना बनायी जाती है, साधन जुटाए जाते हैं, धन एकत्रित किया जाता है तथा लोगों को समय-समय पर दिशा-निर्देश दिए जाते हैं। इस प्रकार से अनौपचारिक संगठन सामाजिक आंदोलन की एक मुख्य विशेषता है।
4. विकास: कोई भी सामाजिक आंदोलन एक निर्मित वस्तु नहीं होता वरन् उसका धीरे धीरे विकास होता है। उदाहरण के लिए, भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन एक दिन या एक घटना की ही देन नहीं वरन् उसका एक लंबा इतिहास है और समय – समय पर उसमें अनेक प्रकार के कारकों ने योग दिया है।
5. नियोजित प्रयत्न: सामाजिक आंदोलन के लिए निश्चित योजना बनायी जाती है और विभिन्न चरणों में उसे पूरा करने का सामूहिक प्रयास किया जाता है।
6. अन्य विशेषताएँ:
- सामाजिक आंदोलन में परिवर्तन की एक दिशा तय होती है।
- सामाजिक आंदोलन के कुछ निश्चित उद्देश्य होते हैं, जिन्हें पाने के लिए ही आंदोलन किया जाता है।
- प्रत्येक सामाजिक आंदोलन का कोई न कोई नेता अवश्य होता है, उसके अभाव में आंदोलन चल नहीं सकता। वही आंदोलन की योजना बनाता है। उसे क्रियान्वित करता है व उसका मार्ग प्रशस्त करता है।
- वैचारिंकी ही सामाजिक आंदोलन के लक्ष्य एवं साधन निर्धारित करती है और उसके औचित्य को सिद्ध करती है। वैचारिकी ही आंदोलन को प्रेरित करती है, लोगों में आशा का संचार करती है।