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“संस्कृतिकरण की प्रक्रिया भारत में सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तन के लिए किस प्रकार से जिम्मेदार है?” स्पष्ट कीजिए।

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संस्कृतिकरण की अवधारणा भारतीय समाज में तथा विशेष रूप से जाति व्यवस्था में होने वाले सामाजिक – सांस्कृतिक परिवर्तनों को समझने में काफी सहायक सिद्ध हुई है।

इसके द्वारा हम जाति व्यवस्था में होने वाले निम्नांकित परिवर्तनों का उल्लेख कर सकते हैं –

  1. संस्कृतिकरण वह प्रक्रिया है जिसमें एक निम्न जाति या जनजाति ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या प्रभुजाति के खान – पान, रीति – रिवाजों, विश्वासों, भाषा, साहित्य तथा जीवन – शैली को ग्रहण करती है। इस प्रकार यह निम्न जाति में होने वाले विभिन्न सामाजिक – सांस्कृतिक परिवर्तन को स्पष्ट करती है।
  2. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया द्वारा एक निम्न जाति की स्थिति में पदमूलक परिवर्तन आता है। इससे उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ जाती है तथा उसकी आस – पास की जातियों से स्थिति ऊँची हो जाती है।
  3. संस्कृतिकरण व्यक्ति या परिवार का नहीं वरन् एक जाति समूह की गतिशीलता का द्योतक है।
  4. संस्कृतिकरण उस प्रक्रिया को प्रकट करता है जिसके द्वारा जनजातियाँ हिन्दू जाति व्यवस्था में सम्मिलित होती है। ऐसा करने के लिए जनजातियाँ हिन्दुओं की किसी जाति की जीवन – विधि को ग्रहण करती है।
  5. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया भूतकाल एवं वर्तमान समय में जाति – व्यवस्था में होने वाले परिवर्तनों को भी प्रकट करती है।
  6. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया जाति – प्रथा में गतिशीलता की द्योतक है। सामान्यतः ऐसा माना जाता है कि जाति – प्रथा एक कठोर व्यवस्था है तथा इसकी सदस्यता जन्मजात होती है। व्यक्ति एक बार जिस जाति में जन्म लेता है, जीवन – पर्यन्त उसी जाति का सदस्य बना रहता है किन्तु यह धारणा सदैव ही सही नहीं होती है। इस प्रक्रिया के द्वारा यदाकदा जाति का बदलना सम्भव है।
  7. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया निम्न जातियों के विवाह एवं परिवार प्रतिमानों में होने वाले परिवर्तनों को भी प्रकट करती है। संस्कृतिकरण करने वाली जाति बाल – विवाह करती है, विधवा – विवाह निषेध का पालन करती है तथा संयुक्त परिवार प्रणाली को उच्च जातियों की तरह ही अपनाती है।

अतः उपरोक्त बिन्दुओं से यह स्पष्ट होता है कि संस्कृतिकरण की प्रक्रिया भारतीय समाज में समस्त सामाजिक सांस्कृतिक परिवर्तनों के लिए जिम्मेदार है।

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