विधवा पुनर्विवाह के औचित्यता को सिद्ध करने के लिए निम्नांकित तर्क दिये जा सकते है –
1. विधवाओं की हृदयस्पर्शी अवस्था: समाज में विधवाओं को अनेक सुविधाओं से वंचित किया गया है और उन पर अनेक प्रकार के प्रतिबंध लागू किये गये हैं। आज नैतिकता का तकाजा है कि विधवाओं को पुनर्विवाह की छूट दी जाए।
2. यौन संबंधी नैतिकता का दोहरा मापदंड: पुरुष को तो स्त्री की मृत्यु के बाद दूसरा विवाह करने की समाज ने छूट दी. है, किंतु स्त्री को नहीं। यौन संबंधी इस दोहरे मापदंड को समाप्त करने के लिए विधवा पुनर्विवाह होने चाहिए।
3. व्याभिचार को रोकने के लिए: यौन अनाचार को रोकने के लिए आवश्यक है कि विधवाओं को पुनर्विवाह की स्वीकृति दी जाए।
4. अपराध रोकने हेतु: विधवा पुनर्विवाह स्वीकृति होने पर यौन अपराध, भ्रूण हत्या एवं आत्महत्याओं की संख्या घटेगी।
5. व्यक्तित्व के विकास के लिए: विधवा स्त्रियों एवं उनके बच्चों के व्यक्तित्व के विाकस के लिए आवश्यक है कि उनका पुनर्विवाह कराया जाए।
6. समाज के एक बड़े अंग की समस्या: यह समस्या समाज की लगभग ढाई करोड़ से अधिक विधवाओं की समस्या है जिसे हल करना मानवता का तकाजा है।
7. मानवता की मांग: मानवता की मांग है कि स्त्री व पुरुष को सभी अधिकार समान रूप से दिए जाएँ विधवाओं को भी जीवित रहने का अधिकार प्रदान किया जाना चाहिए। जीने का अधिकार एक सार्वभौमिक मौलिक अधिकार है।
8. आत्म संयम – एक विडम्बना: हिन्दू धर्मशास्त्रों में स्त्री से संयमित जीवन व्यतीत करने की आशा की गयी जो संभव नहीं है। काम पूर्ति एक प्राकृतिक आवश्यकता है, इसके अभाव में कई शारीरिक एवं मानसिक रोग पैदा होते हैं। अतः विधवा पुनर्विवाह आवश्यक है।
अतः उपरोक्त वर्णित तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि समाज में विधवा पुनर्विवाह एक सार्वभौमिक आवश्यकता है।