अनौपचारिक संगठन का जन्म औपचारिक संगठन से होता है, जब व्यक्ति अधिकाधिक तौर पर बतलायी गई भूमिकाओं से परे आपस में मेल-मिलाप से कार्य करते हैं। जब कर्मचारी स्वतन्त्रतापूर्वक सम्पर्क बनाते हैं तो उन्हें किसी कठोर औपचारिक संगठन की ओर नहीं धकेला जा सकता। बल्कि वे मैत्रीपूर्ण व सहयोगपूर्ण विचारों से एक ग्रुप बनाने की ओर झुकते हैं, यह उनके आपसी हितों की अनुरूपता को प्रकट करता है। अनौपचारिक संगठन के कोई लिखित नियम नहीं होते हैं। इसका कोई क्षेत्र अथवा रूप भी निश्चित नहीं होता है तथा न ही इसकी कोई सम्प्रेषण की निश्चित रूपरेखा होती है। अनौपचारिक समूहों का प्रयोग संगठन की उन्नति तथा सहयोग के लिए किया जा सकता है। ऐसे समूह उपयोगी संचार सुलभ कराते हैं। अनौपचारिक संचार या सम्प्रेषण के माध्यम से कर्मचारियों के आपसी तथा कर्मचारियों एवं उच्च अधिकारियों के मध्य विवाद सुलझाने का कार्य भली-भाँति किया जा सकता है। संगठन के उद्देश्यों को मितव्ययी ढंग से प्राप्त करने तथा कार्यों को सुगमतापूर्वक सम्पन्न करने के लिए प्रबन्धकों को औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों प्रकार के संगठनों का युक्तिपूर्ण ढंग से उपयोग करना चाहिए। अनौपचारिक संगठन को यदि भली-भाँति नियन्त्रित किया जाये तो औपचारिक संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ति में अनौपचारिक संगठन अत्यधिक उपयोगी साबित हो सकता है। अनौपचारिक संगठन औपचारिक संगठन के कर्मचारियों की कार्य सन्तुष्टि में वृद्धि करता है तथा संगठन में अपनत्व की भावना को जागृत करता है। इसके साथ ही अनौपचारिक संगठन औपचारिक संगठन के लक्ष्यों को प्राप्त करने में, औपचारिक संगठन की कमियों को दूर करने में सहायता करता है।