नियोजन एवं नियन्त्रण प्रबन्ध के अलग नहीं होने वाले कार्य हैं। नियन्त्रण प्रणाली में मानकों को पहले से ही निर्धारित कर लिया जाता है। निष्पादन के ये मानक ही नियन्त्रण के लिए आधार प्रदान करते हैं। ये नियोजन द्वारा ही सुलभ कराये जाते हैं। यदि एक बार नियोजन का कार्य प्रारम्भ हो जाता है तो नियन्त्रण के लिए यह आवश्यक होता है कि वह प्रगति की मॉनीटरिंग करे तथा विचलनों को खोजे तथा इस बात का निश्चय करे कि जो भी कार्यवाही हुई है वह नियोजन के अनुरूप ही है। यदि विचलन है तो उनकी सुधारात्मक कार्यवाही करे। इस प्रकार नियन्त्रण बिना नियोजन के अर्थहीन है और इसी तरह नियन्त्रण बिना नियोजन दृष्टिहीन है। यदि मानकों का पहले से निर्धारण नहीं कर लिया जाये तो प्रबन्धक को नियन्त्रण क्रिया में करने के लिए कुछ भी नहीं है।
नियोजन ही नियन्त्रण को आधार प्रदान करता है। नियोजन भविष्य के लिए किया जाता है जिसका आधार भविष्य की दशाओं के विषय में भविष्यवाणी करना होता है। अत: नियोजन में आगे (भविष्य) देखना सम्मिलित है। इसके विपरीत नियन्त्रण भूतपूर्व क्रियाओं का पोस्टमार्टम करना है जो इस बात का पता लगाता है कि मानकों में कहाँ-कहाँ विचलन है। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि नियोजन का कार्य आगे की ओर देखना है जबकि नियन्त्रण का कार्य पीछे की ओर देखना है।