एक संगठन में नियन्त्रण के महत्त्व को निम्नलिखित बिन्दुओं की सहायता से समझा सकते हैं-
1. संगठनात्मक लक्ष्यों की निष्पत्ति- नियन्त्रण संगठन के लक्ष्यों की ओर प्रगति का मापन करके विचलनों का पता लगाता है। यदि कोई विचलन ज्ञात होता है तो उसके सुधार का मार्ग प्रशस्त करता है। इस प्रकार नियन्त्रण संस्थान का मार्गदर्शन करता है तथा सही रास्ते पर चलाकर संगठनात्मक लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता करता है।
2. मानकों की वास्तविकता को आँकना- एक अच्छी नियन्त्रण प्रणाली द्वारा प्रबन्ध निर्धारित मानकों को यथार्थता तथा उद्देश्य पूर्णता को सत्यापित करना है। एक प्रभावी नियन्त्रण पद्धति से वातावरण एवं संगठन में होने वाले परिवर्तनों की सावधानी से जाँच-पड़ताल की जाती है तथा इन्हीं परिवर्तनों के सन्दर्भ में उनके पुनरावलोकन तथा संशोधन में सहायता करता है।
3. संसाधनों का अधिकतम उपयोग- नियन्त्रण की सहायता से प्रबन्धक अपव्यय तथा बर्बादी को कम कर सकता है। प्रत्येक क्रिया का निष्पादन पूर्व निर्धारित मानकों के अनुरूप होता है। इस प्रकार सभी संसाधनों का उपयोग प्रभावी एवं दक्षतापूर्ण ढंग से किया जा सकता है।
4. आदेश एवं अनुशासन की सुनिश्चितता- नियन्त्रण से संगठन का वातावरण ऐसा हो जाता है कि प्रत्येक कर्मचारी आदेश का पालन करता है तथा अनुशासन में रहता है। इससे कामचोर कर्मचारियों की क्रियाओं का नजदीक से निरीक्षण करके उनके असहयोगी व्यवहार को कम करने में सहायता मिलती है।
5. कार्य में समन्वय की सुविधा- निर्देशन उन सभी क्रियाओं तथा प्रयासों को निर्देशन देता है जो संगठनात्मक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए तत्पर होते हैं। प्रत्येक विभाग तथा कर्मचारी पूर्व निर्धारित मानकों से परिचित होते हैं और वे आपस में सुव्यवस्थित ढंग से एक-दूसरे से भली-भाँति समन्वित होते हैं।
6. कर्मचारियों की अभिप्रेरणा में सुधार- एक अच्छी नियंत्रण प्रणाली में कर्मचारियों को पहले से ही यह ज्ञात होता है कि उन्हें क्या कार्य करना है अथवा उनसे किस कार्य को करने की आशा की जाती है तथा उन्हें इस बात का भी ज्ञान होता है कि उनके कार्य निष्पादन के क्या मानक हैं जिनके आधार पर उनकी समीक्षा होगी।
एक प्रभावी नियन्त्रण प्रणाली को लागू करने में संगठन के सामने आने वाली प्रमुख कठिनाइयाँ निम्नलिखित हैं-
1. परिमाणात्मक मानकों के निर्धारण में कठिनाई- जब मानकों को परिमाणात्मक शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है तो नियन्त्रण प्रणाली का प्रभाव कुछ कम हो जाता है। इसलिए निष्पादन का आकलन तथा मानकों से उनकी तुलना करना कठिन कार्य होता है। कर्मचारियों का मनोबल, कार्य सन्तुष्टि तथा मानवीय व्यवहार कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ यह समस्या सामने आ सकती है।
2. बाह्य घटकों पर नियन्त्रण- सामान्य तौर पर एक उपक्रम अपने बाहरी घटकों जैसे सरकारी नीतियाँ, तकनीकी परिवर्तनों, प्रतियोगिताओं आदि पर नियन्त्रण नहीं कर पाता है।
3. कर्मचारियों से प्रतिरोध- अधिकतर कर्मचारी नियन्त्रण प्रणाली का विरोध ही करते हैं। उनके मतानुसार नियन्त्रण उनकी स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध है। उदाहरण के लिए, यदि कर्मचारियों की गतिविधियों पर क्लोज सर्किट टेलीविजन द्वारा निगाह रखी जाती है तो वे इसका विरोध करते हैं। .
4. महँगा सौदा- नियन्त्रण में खर्चा, समय तथा प्रयासों की मात्रा अधिक होने के कारण यह अत्यन्त खर्चीला है। एक छोटा उद्यमी महँगी नियन्त्रण प्रणाली की पहचान नहीं कर सकता है। अतः यह एक छोटे उपक्रम के लिए न्यायसंगत नहीं माने जाते हैं। बड़े संगठनों में भी नियन्त्रण प्रणाली के अच्छे ढंग से लागू करने के लिए पर्याप्त खर्चा करना ही पड़ता है।