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प्रबन्ध की आधुनिक अवधारणा क्या है? स्पष्ट रूप से समझाइए।

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प्रबन्ध की आधुनिक अवधारणा – विद्यालय, अस्पताल, दुकानें एवं बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ ये सभी संगठन हैं जिनके अलग-अलग उद्देश्य होते हैं। इन उद्देश्यों को पाने के लिए सभी संगठन प्रयासरत रहते हैं। इन सभी संगठनों में प्रबन्ध एवं प्रबन्धक की समानता होती है, यह सभी संगठनों में पाये जाते हैं। सफल संगठन अपने उद्देश्यों को केवल संयोग से ही प्राप्त नहीं कर सकते हैं बल्कि वे सफल होने के लिए पूर्व निर्धारित एवं सोची – समझी प्रक्रिया को अपनाते हैं जिसे प्रबन्ध कहते हैं। संगठन चाहे कैसा भी हो लेकिन सभी के लिए प्रबन्ध आवश्यक होता है। संगठन में प्रबन्ध की आवश्यकता प्रत्येक व्यक्ति का संगठन के सामूहिक उद्देश्यों की पूर्ति में योगदान सुनिश्चित करने के लिए होती है।

प्रबन्ध एक बहुप्रचलित शब्द है जिसे सभी प्रकार की क्रियाओं के लिए व्यापक रूप से प्रयोग में लाया जाता है। प्रबन्ध लोगों के प्रयत्नों एवं समान उद्देश्यों को पाने के लिए कार्य करता है। इस प्रकार प्रबन्ध यह देखता है कि कार्य कम-से-कम साधनों एवं न्यूनतम लागत पर पूरे हों एवं लक्ष्य प्राप्त किये जायें। अत: यह कहा जा सकता है कि प्रबन्ध उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से एवं दक्षता से प्राप्त करने के उद्देश्य से कार्यों को पूरा कराने की प्रक्रिया है।

इस परिभाषा में आये निम्नलिखित शब्दों का विश्लेषण करने से प्रबन्ध को भली-भाँति समझने में आसानी होगी –

(i) प्रक्रिया
(ii) प्रभावी ढंग से
(iii) पूर्ण क्षमता से।

परिभाषा में प्रयुक्त प्रक्रिया से अभिप्राय है, प्राथमिक कार्य या क्रियाएँ जिन्हें प्रबन्ध कार्यों को पूरा कराने के लिए करता है। यह कार्य नियोजन, संगठन, नियुक्तिकरण, निर्देशन एवं नियन्त्रण हैं। कार्य को प्रभावी ढंग से करने का अभिप्राय दिये गये कार्य को सम्पन्न करने से है। प्रभावी प्रबन्ध का सम्बन्ध सही कार्य को करने, क्रियाओं को पूरा करने एवं उद्देश्य को प्राप्त करने से है। लेकिन कार्य को सम्पन्न करना मात्र ही पर्याप्त नहीं है बल्कि इसका एक और पहलू भी है और वह है कार्य को कुशलतापूर्वक अर्थात् पूर्ण क्षमता से पूर्ण करना।

कुशलता का अर्थ है – कार्य को सही ढंग से न्यूनतम लागत पर पूरा करना। इसमें एक प्रकार की लागत – लाभ विश्लेषण एवं आगत एवं निर्गत के बीच सम्बन्ध होता है। यदि कम साधनों (आगतों) का उपयोग कर अधिकतम लाभ (निर्गत) प्राप्त करते हैं, तो इसे क्षमता में वृद्धि के रूप में देखा जाएगा। अर्थात् क्षमता में वृद्धि होगी यदि उसी लाभ के लिए कम साधनों का उपयोग किया जाए एवं लागत पर कम व्यय हो।

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