व्यवसायियों/उपक्रमों के लिये विपणन प्रबन्ध का महत्व:
वर्तमान में प्रतिस्पर्धा के युग में व्यवसाय का अस्तित्व विकास एवं सफलता कुशल विपणन व्यवस्था पर निर्भर करता है।
फर्म में विपणन के महत्व को निम्न शीषकों द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है –
1. प्रतिस्पर्धा का सामना – आज बढ़ते हुए वैश्वीकरण के कारण विभिन्न व्यवसायी संस्थाओं में आपस में प्रतिस्पर्धायें निरन्तर बढ़ती जा रही हैं लेकिन आधुनिक प्रतिस्पर्धात्मक वातावरण में विपणन कार्यों के द्वारा फर्मे अपने अस्तित्व की रक्षा कर सकती हैं। कोई भी संस्था या व्यवसाय प्रभावकारी विपणन समूह रचना निर्धारित करके व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा का आसानी से मुकाबला कर सकता है।
2. नियोजन का आधार – विपणन प्रबन्ध बाजार एवं उपभोक्ता से जुड़ी हुई प्रणाली होने के कारण व्यवसायियों को ग्राहकों की आवश्यकताओं, इच्छाओं, रुचियों आदि का समुचित ज्ञान हो जाता है जिससे विभिन्न योजनायें बनाने में सरलता हो जाती है। विभिन्न विपणन सूचनाओं, बाजार माँग, प्रतिस्पर्धा, फैशन, ग्राहक की रुचि, क्रये शक्ति आदि के आधार पर ही कम्पनी योजनाओं को तैयार करती है।
3. विक्रय में वृद्धि – विपणन प्रबन्ध के द्वारा बाजार एवं उपभोक्ता का विश्लेषण किया जाता है। जिससे ग्राहकों की बदलती हुई रुचियों, आवश्यकताओं व फैशन का ज्ञान प्रबन्धकों को हो जाता है व उन्हीं के अनुरूप वस्तुएँ उत्पादित की जाती हैं। फलस्वरूप माल के विक्रय में आसानी हो जाती है तथा बिक्री में भी वृद्धि होती है।
4. न्यूनतम लागत पर वितरण – जब व्यवसासियों द्वारा विपणन प्रक्रिया के अन्तर्गत ग्राहकों की आवश्यकताओं, इच्छाओं एवं रुचियों के अनुरूप निश्चित योजनानुसार उत्पादित वस्तुओं का वितरण किया जाता है तो निश्चित ही लागतें न्यूनतम होती हैं।
5. लाभों में वृद्धि – प्रभावशाली विपणन व्यवसायिके लाभ को बढ़ाने में सहयोग प्रदान करता है। माल की मांग बढ़ने पर क्रय लागत पर अधिक उत्पादन करके मांग की पूर्ति की जाती है तो लाभों में निश्चित ही वृद्धि होती है।
6. मध्यस्थों की प्राप्ति में सहायक – प्रभावशाली विपणन व्यवस्था के माध्यम से व्यवसासियों को मध्यस्थों, एजेन्ट, थोक व्यापारी, फुटकर व्यापारी आदि को प्राप्त करने में सरलता होती है। मध्यस्थ उसी उत्पादक का माल बेचते हैं जिनकी विपणन व्यवस्था ग्राहक प्रधान होती है।
7. ख्याति का निर्माण – जब ग्राहक को उनकी आवश्यकता के अनुसार न्यूनतम लागत पर अच्छी वस्तुएँ प्राप्त होती हैं तो उनको सन्तुष्टि प्राप्त होती है। इससे बाजार में सन्तुष्ट ग्राहकों की संख्या में निरन्तर वृद्धि होने लगती है जिसके परिणामस्वरूप संस्था की ख्याति में वृद्धि होती है। विज्ञापन व विक्रय संवर्द्धन योजनायें भी संस्था की ख्याति में वृद्धि करती हैं।
8. विकास एवं विस्तार – विपणन प्रबन्ध का उत्पाद विविधीकरण एवं नव प्रवर्तन कार्यों में महत्वपूर्ण योगदान रहता है जिससे संस्था अपने विद्यमान ढांचे के अन्तर्गत नई वस्तुओं को जोड़ सकती है तथा वर्तमान उत्पादन क्षमता का विस्तार कर सकती है। इस प्रकार संस्था की उत्पादन क्षमता में वृद्धि हो जाने से विकास की सम्भावनायें बढ़ जाती हैं।
9. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में सफलता – प्रभावकारी विपणन प्रबन्ध द्वारा विदेशी ग्राहकों की इच्छा, आवश्यकता, रीतिरिवाज, प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति आदि के सम्बन्ध में सूचनायें एकत्रित करके उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप वस्तुओं का रंग, रूप, आकार देकर उचित किस्म की वस्तुओं का निर्माण किया जाता है। जिससे अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में सफलता मिलती है।
10. उपभोक्ताओं की सेवा – विपणन प्रबन्ध के माध्यम से उपभोक्ताओं की सेवा सम्भव हो पाती है। बड़े पैमाने पर उत्पादन कर फर्म तथा उद्योग अप्रत्यक्ष रूप से विपणन के माध्यम से उपभोक्ताओं की सेवा कर पाते हैं। मध्यस्थों के माध्यम से सूचनाओं तथा शिकायकतों के प्राप्त होने पर उन पर विचार करके निर्णय लिया जाता है। वस्तुओं की कमियों का पता लगाना तथा उसमें सुधार करना विपणन के द्वारा ही किया जाता है।