“विक्रय संवर्द्धन में वैयक्तिक विक्रय, विज्ञापन एवं प्रकाशन के अलावा वे समस्त अनियमित क्रियायें, जैसे – प्रदर्शन, दिखावी एवं प्रदर्शनी, क्रियात्मक प्रदर्शन आदि सम्मिलित की जाती हैं जो उपभोक्ता की क्रय शक्ति तथा विक्रेता की प्रभावशीलता को प्रोत्साहित करती हैं।”