माँग व पूर्ति का सन्तुलन-माँग पक्ष से पता चलता है कि वस्तु की सीमान्त उपयोगिता उसके मूल्य की उच्चतम सीमा .. होती है जबकि पूर्ति पक्ष से पता चलता है कि सीमान्त लागत उसके मूल्य की निम्नतम सीमा होती है। वस्तु का वास्तविक मूल्य इन्हीं दो सीमाओं के बीच उस बिन्दु पर निर्धारित होता है जहाँ पर उस वस्तु की माँग व पूर्ति बराबर हो जाए। क्रेता यह चाहता है कि वह कम-से-कम मूल्य चुकाये जबकि विक्रेता अधिक-से-अधिक मूल्य प्राप्त करना चाहता है। अतः माँग व पूर्ति के साम्य बिन्दु पर वास्तविक कीमत निर्धारित होती है जहाँ पर क्रेता व विक्रेता दोनों सन्तुष्ट होते हैं। उस साम्य बिन्दु पर निर्धारित कीमत को ही ‘साम्य कीमत’ या सन्तुलन मूल्य कहा जाता है और इस कीमत पर निर्धारित वस्तु की मात्रा को ‘साम्य मात्रा’ या सन्तुलन मात्रा कहा जाता है।

तालिका की व्याख्या – तालिका से स्पष्ट है कि X वस्तु की कीमत बढ़ने पर उसकी माँग कम हो जाती है जबकि वस्तु की पूर्ति में वृद्धि हो जाती है। तालिका में साम्य कीमत ₹20 पर वस्तु की माँग व पूर्ति दोनों बराबर 15-15 इकाइयाँ हैं। अतः ₹20 साम्य कीमत कहलाएगी।

रेखाचित्र की व्याख्या – उपरोक्त रेखाचित्र में Ox अक्ष पर वस्तु की माँग व पूर्ति दर्शायी गई है जबकि Oy अक्ष पर वस्तु की कीमत को दर्शाया गया है। DD वक्र माँग को व्यक्त करता है जबकि SS वक्र वस्तु की पूर्ति का वक्र है। माँग व पूर्ति वक्र दोनों एक-दूसरे को E बिन्दु पर काटते हैं। अत: वस्तु की कीमत OP निर्धारित हो जाती है वस्तु की निर्धारित OQ मात्रा साम्य कहलाती है। E बिन्दु पर निर्धारित कीमत ही साम्य कीमत है। जब वस्तु की कीमत ₹20 है तो इस कीमत पर माँग व पूर्ति दोनों बराबर-बराबर 15 इकाइयाँ हैं। अत:- E साम्य बिन्दु है जिस पर माँग व पूर्ति बराबर हो जाती है।