एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी श्रम बाजार में श्रम की माँग फर्मों (उत्पादकों) द्वारा की जाती है तथा श्रम की पूर्ति परिवारों अर्थात् श्रमिकों द्वारा की जाती है। यहाँ श्रम से आशय श्रमिकों की संख्या से न होकर श्रम के घण्टों से है। प्रत्येक श्रमिक अधिकतम मजदूरी दर पर कार्य करना चाहता है तथा प्रत्येक फर्म अधिकतम लाभ कमाना चाहती है। अधिक लाभ कमाने के उद्देश्य से फर्म सदा उस बिन्दु तक श्रम का उपयोग करती है, जिस पर श्रम की अन्तिम इकाई के उपयोग की अतिरिक्त लागत उस इकाई से प्राप्त अतिरिक्त लाभ के बराबर हो। श्रम की एक अतिरिक्त इकाई को उपयोग में लाने की अतिरिक्त लागत मजदूरी दर (ω) कहलाती है। श्रम की एक अतिरिक्त इकाई द्वारा उत्पन्न किया गया अतिरिक्त निर्गत उत्पादन उसका सीमान्त उत्पादन (MP) तथा प्रत्येक अतिरिक्त इकाई निर्गत के विक्रय से प्राप्त होने वाली अतिरिक्त आय, फर्म की उस इकाई से प्राप्त सीमान्त सम्प्राप्ति (MR) है। अत: श्रम की प्रत्येक अतिरिक्त इकाई के लिए उसे जो अतिरिक्त लाभ मिलता है, वह सीमान्त सम्प्राप्ति (MR) तथा सीमान्त उत्पादन (MPL) के गुणनफल के बराबर होता है। यह श्रम का सीमान्त सम्प्राप्ति उत्पाद (MRPL) कहलाता है। लेकिन फर्म को अधिकतम लाभ तभी प्राप्त होगा जबकि निम्नलिखित शर्ते पूरी हों।
ω = MRPL
MRPL = MR × MPL
यहाँ ω = मजदूरी की दर
MRPL = श्रम की सीमान्त आगम उत्पादकता
MR = सीमान्त आगम
MPL = श्रम की सीमान्त उत्पादकता
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में सीमान्त आगम कीमत के बराबर होता है और कीमत सीमान्त उत्पाद के मूल्य (VMP) के बराबर होती है। अतः श्रम के चयन की इष्टतम मात्रा वह होती है जिस पर मजदूरी दर तथा सीमान्त उत्पाद के मूल्य समान होते हैं। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं, कि श्रम की इष्टतम मात्रा वह होती है जिस पर श्रम की माँग, श्रम की पूर्ति के बराबर होती है।
सूत्र – DL = DS