नये साझेदार के प्रवेश के समय सम्पत्तियों एवं दायित्वों को वर्तमान मूल्य पर दिखाने के लिए उनका पुनर्मूल्यांकन किया जाता है। क्योंकि सम्पत्तियों के मूल्यों में वृद्धि होने तथा दायित्वों के मूल्यों में कमी होने पर लाभ होता है और सम्पत्तियों के मूल्यों में कमी होने तथा दायित्वों के मूल्यों में वृद्धि होने पर हानि होती है । लाभ होने पर पुराने साझेदार नये को नहीं देना चाहते हैं तथा हानि होने पर नया साझेदार उसे वहन नहीं करना चाहता है। इसलिए पुनर्मूल्यांकन के लाभ/हानि को पुराने साझेदारों में बाँटने के लिए। लाभ-हानि समायोजन खाता या पुनर्मूल्यांकन खाता बनाया जाता है।