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प्राप्ति भुगतान खाते व अन्य सूचनाओं से आय व्यय खाता बनाने की विधि उदाहरण सहित समझाओ।

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प्राप्ति एवं भुगतान खाते से आय-व्यय खाता बनाना : किसी संस्था को होने वाली बचत या घाटे का अनुमान आय-व्यय खाते से ही लगाया जाता है। प्राप्ति एवं भुगतान खाते से आय-व्यय खाता बनाते समय अग्रलिखित प्रक्रिया अपनाई जायेगी

  1. प्राप्ति एवं भुगतान खाते के प्रारम्भिक एवं अन्तिम रोकड़ तथा बैंक शेष को आय-व्यय खाते में न दिखाकर चिट्टे के सम्पत्ति पक्ष की ओर दर्शाया जायेगा ।
  2. आय-व्यय खाते में केवल चालू वित्तीय वर्ष से सम्बन्धित आयगत प्राप्तियों एवं आयगत भुगतानों को ही दर्शाया जाता है। जैसे कि चन्दा प्राप्त हुआ Rs 5,000 लेकिन वर्ष के अन्त में बकाया चंदा Rs 1,200 अतः आय-व्यय खाते में दिखाई जाने वाले राशि Rs 6,200 होगी।
  3. प्राप्ति एवं भुगतान खाते की पूँजीगत प्राप्तियों एवं पूँजीगत भुगतानों को आय-व्यय खाते में नहीं दिखाया जाता है।
    उदाहरण Life Membership Fees Received यह एक पूँजीगत प्राप्ति है तथा Investment पूँजीगत भुगतान है अतः इन्हें आय-व्यय खाते में नहीं दर्शाया जायेगा।
  4. निम्नलिखित मदें जो प्राप्ति एवं भुगतान खाते में नहीं होतीं लेकिन आय-व्यय खाते में दिखाई जाती हैं। जैसे—Depreciation on Fixed Assets, Loss on Sale of Fixed Assets (Expenditure Side) Profit on Sale of Assets (Income side) में।
  5. प्राप्ति एवं भुगतान खाते में दी हुई उन प्राप्तियों एवं भुगतानों को शामिल नहीं किया जाना चाहिए जो पिछले वित्तीय वर्ष से सम्बन्धित हों अथवा आगामी वर्ष से सम्बन्धित हो जैसे किराया प्राप्त किया गया Rs 1800 इसमें पिछले वर्ष से सम्बन्धित Rs 500 शामिल हैं तो आय-व्यय खाते में आय पक्ष की ओर केवल Rs 1300 दिखाये जायेंगे।
  6. प्राप्ति एवं भुगतान खाते के क्रेडिट पक्ष के चालू वर्ष से सम्बन्धित आयगत भुगतानों को आय-व्यय खाते के डेबिट पक्ष अर्थात् Expenditure पक्ष में दिखाना चाहिए ।
  7. आय-व्यय खाता चालू वित्तीय वर्ष से सम्बन्धित समस्त आयगत आय,समस्त आयगत भुगतानों को प्रदर्शित करता है, अतः प्राप्ति एवं भुगतान खाते में दिखाई गई मर्दो की राशि में दी गई अतिरिक्त सूचनाओं के आधार पर समायोजन किये जाने के पश्चात् वित्तीय वर्ष से सम्बन्धित आयगत आय तथा व्यय इस खाते में दिखाये जाते हैं।

आय व्यय तैयार करते समय निम्नलिखित समायोजन करना आवश्यक होता है-

  • चालू वित्तीय वर्ष की बकाया आय को प्राप्त आय में जोड़कर दिखाया जाता है।
  • चालू वित्तीय वर्ष में प्राप्त आगामी वर्ष की आय को प्राप्त मद से घटाकर दिखाया जाता है क्योंकि ये मदें उस चालू वित्तीय वर्ष से सम्बन्धित नहीं होतीं, जैसे-Subscription Received in Advance for next year.
  • गत वर्ष में प्राप्त चालू वित्तीय वर्ष की आय को प्राप्त सशि में जोड़कर दिखाया जाता है।
  • चालू वित्तीय वर्ष में गत वर्ष से सम्बन्धित आय की प्राप्ति को प्राप्त आय की राशि में से घटाकर दिखाया जाता है।
  • चालू वित्तीय वर्ष से सम्बन्धित बकाया आयगत खर्ची को सम्बन्धित भुगतान की मद में जोड़कर दिखाया जाता है। जैसे-Outstanding Salary उसी प्रकार आगामी वर्ष के भुगतान किए गए खर्चे को घटाकर दिखाया जाता है। जैसे-Prepaid Insurance आदि।
  • चालू वर्ष के खर्चे का गत वर्ष में किए गए भुगतान को चालू वित्तीय वर्ष की राशि में जोड़कर दिखाया जाता है।
    उपरोक्त प्रक्रिया अपनाने के पश्चात् आय-व्यय खाते का शेष ज्ञात किया जाता है यह क्रेडिट शेष होने पर बचत (Surplus) अथवा Debit शेष होने पर घाटा (Deficit) बतलाता है । चिट्ठा बनाते समय बचत को पूँजी कोष में जोड़कर अथवा घाटे को पूँजी कोष में से घटाकर चिड़े के दायित्व पक्ष की ओर दर्शाया जाता है।

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