मुद्रास्फीति के समय सरकार द्वारा संकुचित मौद्रिक और राजकोषीय नीति अपनाई जानी चाहिए। राजकोषीय नीति के तहत् सरकार को करों में वृद्धि, अनावश्यक व्यय में कटौती करके समग्र माँग में कमी करनी चाहिए। करों की दरों में बहुत अधिक वृद्धि नहीं होनी चाहिए अन्यथा निवेश और उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। सरकार द्वारा अनिवार्य बचत स्कीम भी चलायी जा सकती है। सरकार को अतिरिक्त बजट बनाने का प्रयास करना चाहिए एवं सार्वजनिक ऋणों के पुन: भुगतान को रोक देना चाहिए। इसी परिप्रेक्ष्य में कठोर मौद्रिक नीति अपनाई जानी चाहिए। आधिक्य माँग के कारण कीमतों में वृद्धि रोकने हेतु केन्द्रीय बैंक, दर में वृद्धि, खुले बाजार में प्रतिभूतियों का विक्रय और रिजर्व अनुपात में वृद्धि करता है। साथ ही चयनात्मक साख नियन्त्रण जैसे-साख सीमा आवश्यकता को बढ़ाता है। साथ ही उपभोक्ता साख को भी नियन्त्रित करता है। इन सभी उपायों के अतिरिक्त करेन्सी का विमुद्रीकरण भी किया जा सकता है। इस प्रकार मुद्रास्फीति की स्थिति में राजकोषीय नीति और मौद्रिक नीति के उचित उपायों को सामंजस्य से उभारा जा सकता है।