नकदी विहीन लेन – देन शब्द से ही इसको अर्थ लगाया जा सकता है अर्थात् बिना नकद के आर्थिक लेन-देन। इस प्रकार का लेन-देन क्रेता एवं विक्रेता, वस्तु एवं सेवाओं के बदले और नकद या नकद रहित रूप में करते हैं। यह अनेक बैंक खातों में राशि स्थानान्तरण से समझा जाता है। यह ई-कॉमर्स का ही एक माध्यम कहा जा सकता है जो कि भारत में लगभग एक दशक पूर्व प्रारम्भ हो चुका है।
नकद विहीन लेन-देन के लाभ – नकद विहीन लेन-देन एक ओर जहाँ समय की माँग है वहीं अर्थव्यवस्था में सुविधायुक्त एवं सुरक्षित लेन-देन के लिए भी आवश्यक माना जाने लगा है। वर्तमान समय में यह एक बेहतर विकल्प प्रस्तुत करता है। अर्थव्यवस्था में बढ़ते हुए आर्थिक लेन-देन को देखते हुए नकदी विहीन लेन-देन एक सरल एवं सुविधाजनक विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है।
आर्थिक और सामाजिक दृष्टिकोण से इसके कुछ महत्त्वपूर्ण लाभ इस प्रकार है –
(i) समय व धन की बचत – नकदी विहीन लेन-देन का सबसे बड़ा फायदा ग्राहक वर्ग को है। अनेक प्रकार के बिल काउन्टर पर जाकर जमा कराने होते हैं जिससे आने-जाने का समय व धन खर्च होता है। आजकल ऑनलाइने बाजार खरीद पर उपभोक्ताओं को विशेष छूट दी जाती है।
(ii) नकद रखने से छुटकारा – अनेक अवसरों पर बड़ी खरीदारी करने के लिए अधिक मात्रा में नकद अपने पर्स या जेबों में इधर-उधर ले जाना पड़ता है जो कि असुविधाजनक एवं असुरक्षित होता है। ऐसे में नकदी विहीन लेन-देन का माध्यम अपनाने से अधिक मात्रा में नकद रखने से छुटकारा मिलता है।
(iii) बैंकों पर दबाव में कमी – अर्थव्यवस्था में लोगों द्वारा अधिक से अधिक नकदी विहीन लेन-देन की आदत अपनाने से बैंकों पर अनावश्यक दबाव में कमी आती है। लोग बार-बार बैंकों में नकदी की माँग के लिए जाते हैं। इसके अलावा बैंकों को नकदी का हिसाब-किताब कम रखना पड़ता है। बैंकों में खाते कम्प्यूटरीकृत होने से खातों में पैसा स्वत: ही खाताधारकों द्वारा खर्च और जमा होता रहता है।
(iv) राजस्व में वृद्धि – नकद विहीन लेन-देन का एक लाभ यह भी है कि क्रेता द्वारा भुगतान की गई राशि सीधे विक्रेता के चालू खाते में जमा होती है जिससे उसकी आय का सटीक अनुमान लगाना सम्भव हो पाता है।
(v) कालाबाजारी में कमी – बाजार में होने वाले आर्थिक सौदे यदि नकदी विहीन होने लगें तो सरकार के लिए यह पता लगाना आसान हो जाता है कि किस व्यापारी ने कैब और कितना माल खरीदा है। इससे किसी आवश्यक सामग्री को कालाबाजारी के उद्देश्य से संग्रह करने पर पाबंदी लगेगी।
(vi) अवैध कार्यों पर लगाम – अर्थव्यवस्था में अनेक ऐसे आर्थिक लेन-देन होते हैं जो सट्टे के उद्देश्य से सम्पादित किये जाते हैं किन्तु सरकार की नजरों से बच जाते हैं। इस प्रकार के अवैध कार्यों में प्रमुखत: जमीन के सौदे एवं रियल एस्टेट में जमीनों की ब्रिकी अधिक मूल्य को कम दिखाकर या कम मूल्य को अधिक दिखाकर नकद में लेन-देन किये जाते हैं।
नकदी विहीन लेन-देन की समीएँ।
(i) अशिक्षित वर्ग को कठिनाई – नकद विहीन अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने में सबसे बड़ी बाधा देश में कम पढ़े-लिखे व अशिक्षित लोगों का एक बड़ा वर्ग है जो इसके लाभ को सीमित कर देता है।
(ii) बैंकिंग आदतों में कमी – विकासशील देशों की एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक समस्या है कि लोगों की बैंकिंग आदतों में रुचि कम पायी जाती है। भारत जैसे विशाल देश में प्रधानमंत्री जन-धन खाता योजना के अन्तर्गत करोड़ों लोगों के बैंकों में निःशुल्क खाते खोले गए, किन्तु लोग इनका सुचारु उपयोग नहीं कर पाते हैं।
(iii) धोखाधड़ी की आशंका – धोखा-धड़ी की आशंका के कारण लोग नकद विहीन लेन-देन से बचने का प्रयास करते हैं। यदि वे अपना गुप्त पासवर्ड सुरक्षित रखें तो ऐसा होना लगभग असम्भव है।
(iv) अनेक सौदों में अनुपयोगी – अर्थव्यवस्था में कुछ ऐसे सौदे होते हैं जिनमें नकद विहीन लेन-देन लगभग अनुपयोगी साबित होता है।
जैसे-छोटे व्यवसाय करने वाले कामगार, मोची, धोबी, प्रेस, सब्जी वाला, दूध वाला, दिहाड़ी मजदूर, मिस्त्री, सफाई कर्मी आदि नकद भुगतान को ही महत्त्व देते हैं।
(v) बैंकिंग सुविधाओं का विस्तार सीमित – बड़ी अर्थव्यवस्था में सीमित बैंकिंग सुविधा भी नकदी विहीन लेन-देन की दिशा में एक बड़ी बाधा का कार्य करती है। भारत जैसे बड़े देश में अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सुविधाएँ पर्याप्त रूप से नहीं पहुंच पाई है। ऐसे में पर्याप्त बैंकिंग सुविधाओं के अभाव में नकदी विहीन लेन-देन केवल शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित होकर रह जाएगा।
(vi) सायबर अपराधों पर रोकथाम हेतु प्रभावी कानून की कमी – भारतीय परिवेश में आज भी नकदी विहीन लेन-देन करने वाले ग्राहकों के अधिकारों को संरक्षण प्रदान करने वाले कानूनों का अभाव है। नकदी विहीन लेन-देनों के दौरान किसी भी प्रकार की धोखाधड़ी होने पर त्वरित रोकथाम एवं कार्यवाही हेतु प्रभावी कानून के अभाव में सालों तक लोगों को आर्थिक क्षति उठानी पड़ती है।