विजयनगर के शासकों ने स्थापत्य कला के विकास में सराहनीय योगदान दिया। इस शैली के सर्वोत्कृष्ट उदाहरणों में देवराय द्वितीय द्वारा निर्मित हजारा मंदिर और कृष्णदेव राय द्वारा निर्मित विठ्ठल स्वामी के मंदिर प्रसिद्ध हैं। इन मंदिरों में मण्डप के अतिरिक्त एक कल्याण मण्डप को निर्माण किया गया है। यह आमतौर पर मंदिर के आँगन के बायीं ओर बनाया जाता था।
इसमें अलंकृत स्तम्भों का प्रयोग होता था। दूसरी विशेषता ‘अम्मान मंदिर’ के रूप में देखी जा सकती है। इसमें देवता की पत्नी की विशेष रूप से आराधना की जाती थी। इनके अतिरिक्त मंदिर में प्रवेश द्वार बने थे। गोपुरम् और मंदिर के स्तम्भों के अलंकार पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाता था। कांचीपुरम् का एकाग्रनाथ नामक मंदिर तथा ताड़पत्री स्थित रामेश्वरम् मंदिर अपने सुन्दर गोपुरों के कारण अत्यन्त प्रसिद्ध हैं, जबकि श्रीरंग स्थित शेषगिरी मण्डप में प्रस्तुत घोड़ों की मूर्तियाँ अपनी सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध हैं।
विजयनगर के शासकों द्वारा अनेक महलों एवं राजप्रासादों का भी निर्माण कराया गया। इन भवनों की दीवारों पर चित्रण के सुन्दर उदाहरण मिलते हैं। चित्रकला के अतिरिक्त मूर्तियों का निर्माण भी इस काल में प्रचुर मात्रा में हुआ। कृष्णदेवराय और उसकी पत्नियों, वेंकट प्रथम और कुछ अन्य शासकों की कांस्य की बनी विशाल मूर्तियाँ धातुकला में विजयनगर के कारीगरों की प्रवीणता को दर्शाती हैं।