हर्षवर्धन एक महान सेनापति, कला, साहित्य एवं धर्म का संरक्षक था। हर्ष विद्वानों का उदार आश्रयदाता था। हर्ष के राजस्व का चौथाई हिस्सा बौद्धिक उपलब्धियों जैसे विद्या के प्रसार एवं विद्वानों को पुरस्कृत करने पर व्यय होता था। हर्ष ने मयूराष्टक तथा सूर्यशतक के रचयिता मयूर, हर्ष चरित्र एवं कादम्बरी के रचयिता बाणभट्ट सहित भृर्तहरि, मातंग, दिवाकर एवं जयसेन आदि अनेक विद्वानों को संरक्षण दिया। स्वयं हर्ष ने नागानंद, प्रियदर्शिका व रत्नावली आदि रचनाएँ रच।
हर्ष ने शिक्षा के प्रसार-प्रचार के लिए धन एवं ग्रामों को दान में दिया। नालन्दा विश्वविद्यालय शिक्षा का एक प्रमुख केन्द्र था। इसके अतिरिक्त वल्लभी, अनेक गुरुकुल, आश्रम एवं विहार आदि शिक्षा के केन्द्र थे। इस प्रकार हर्ष ने प्रजा के बौद्धिक स्तर को ऊँचा उठाने का प्रयत्न किया। हर्ष ने बौद्ध धर्म के साथ-साथ अन्य धर्मों की सहिष्णुता पर बल दिया एवं उनका संरक्षण किया। हर्ष ने अनेक विद्वानों को संरक्षण दिया तथा शिक्षा के प्रसार-प्रचार के लिए वित्त का पोषण भी किया।
विभिन्न ऐतिहासिक साक्ष्यों से यह ज्ञात होता है कि हर्ष राजस्व का आधा भाग धर्म, शिक्षा – साहित्य के संरक्षण हेतु व्यय करता था। हर्ष प्रारम्भ में शैव था, तत्पश्चात् वह महायान बौद्ध धर्म की ओर प्रवृत्त हुआ। इन सिद्धान्तों के प्रचार – प्रसार के लिए हर्ष ने कन्नौज में 643 ई. में एक विशाल सम्मेलन का आयोजन किया। इसमें बौद्ध, ब्राह्मण, जैन व नालंदा के विद्वानों ने भाग लिया।
हर्ष राजस्व का चौथाई हिस्सा धर्म के लिए व्यय करता था। उसके प्रश्रय से महायान बौद्ध धर्म देश-विदेश में फैला। प्रयाग व कन्नौज आदि सभाओं के माध्यम से विभिन्न धर्मावलम्बियों को एक जगह लागकर धार्मिक सहिष्णुता एवं सामाजिक एकता का सूत्रपात किया। उपर्युक्त समस्त विवरण से यह बात पूर्णतया स्पष्ट हो जाती है कि ज्ञान व विद्या का महान संरक्षक था।