चोल कला प्रेमी एवं महान निर्माता थे। उन्होंने विशाल राजप्रासाद, कृत्रिम झीलें, विस्तीर्ण बाँध, सुन्दर नगर, धातु एवं पाषाण की मूर्तियाँ तथा भव्य मन्दिरों का निर्माण कराया।
1. स्थापत्य कला: चोल स्थापत्य की मुख्य देन मंदिर निर्माण है। इन मन्दिरों का निर्माण द्रविड़ शैली में हुआ। उनके द्वारा निर्मित मन्दिरों की मुख्य विशेषताएँ विशाल व वर्गाकार विमान, मध्य में विस्तृत आँगन, अलंकृत गोपुरम्, मण्डप, अन्तराल, सजावट के लिए पारम्परिक सिंह ब्रेकेट तथा संयुक्त स्तम्भों का प्रयोग आदि हैं। चोलकालीन प्रारम्भिक मंदिरों में तिरुकट्टलाई को सुन्दरेश्वर मन्दिर, नरतमलाई का विजयालय चोलेश्वर मन्दिर प्रसिद्ध है। राजराज का वृहदेश्वर, राजेन्द्र प्रथम का गंगैकोण्डचोलपुरम्, कोरंग नाथ, ऐरातेश्वर, त्रिभुवनेश्वर आदि अन्य प्रमुख मंदिर हैं। चोल कला का प्रभाव इण्डो – चीन तथा सुदूर पूर्व के देशों पर पड़ा जिसका प्रमुख उदाहरण कम्बोडिया में अंकोरवाट का महान मंदिर है।
2. मूर्तिकला: इस काल में उत्कृष्ट मूर्तिकला के उदाहरण ब्रह्मा, विष्णु, नटराज, राजा, रानियों आदि की पाषाण, कांस्य व अष्टधातु की मूर्तियाँ हैं। इस काल में धातु मूर्तियों में नटराज शिव की कांस्य मूर्ति विशेष उल्लेखनीय है। मूर्तिकला भवन निर्माण कला की सहायक कला के रूप में भी विकसित हुई। मन्दिरों की दीवारों एवं छतों पर इनका प्रचुर मात्रा में प्रयोग हुआ।
3. चित्रकला: भित्ति चित्रकला के अन्तर्गत बृहदेश्वर मन्दिर की दीवारों पर अजन्ता की चित्रकला से प्रभावित धार्मिक चित्रकारी की गई है। शिव, कैलाश, नन्दी आदि चित्रों को उकेरा गया है। तंजावुर में उत्कृष्ट चित्रकला के उदाहरण मिलते हैं। इनके अतिरिक्त राजराज प्रथम ने अपने शासन के दौरान चोल अभिलेखों का प्रारम्भ ऐतिहासिक प्रशस्ति के साथ करवाने की प्रथा की शुरूआत की।
चोल साहित्य: चोल शासक शिक्षा एवं साहित्य के संरक्षक. थे। मन्दिर तथा ग्राम महासभाएँ शिक्षा के केन्द्र थे। तमिल एवं संस्कृत भाषा का प्रचलन था। तमिल को राजाश्रय प्राप्त था। चोलो के शासन काल में कम्बन ने रामावतार नामक ग्रन्थ की रचना की। जयन्गोन्दार ने कलितुंग पर्णी नामक ग्रन्थ की रचना की। शेक्किल्लार का परियापुराणम तथा पुलगेन्दी का नलबेम्ब इस काल की महत्वपूर्ण रचनाएँ हैं।
इसके अतिरिक्त अन्य महत्वपूर्ण रचनाओं में प्रिय पूर्णम या शेखर की तिरुट्टोन्डपूर्णम्, नंदी का तिरुविलाईयादल पूर्णम्, अमुदनार का रामानुज नुरंदादि, तिरुकदेवर का शिवकोशीन्दमणि आदि धार्मिक ग्रन्थ तथा बुद्धमित्र का विरासोलियम्, पबन्दी का नन्नौर आदि व्याकरण ग्रन्थ प्रमुख हैं। जैन ग्रन्थों में तिक्करदेवर का जीवक चिन्तामणि, बौद्ध ग्रन्थों में कुण्डल केशी महत्वपूर्ण है। रामानुज, यमुनाचार्य एवं ऋग्वेद पर भाष्यकार बैकट माधव आदि ने संस्कृत ग्रन्थों की रचना की।