चोल शासक शिक्षा एवं साहित्य के संरक्षक थे। शिक्षा के प्रमुख केन्द्र मन्दिर तथा ग्राम महासभाएँ थीं। चोल साहित्य की रचना में तमिल एवं सस्कृत भाषा का प्रचलन था। इस काल को तमिल साहित्य का स्वर्णकाल भी माना जाता है। इसके अतिरिक्त रामानुज, यमुनाचार्य एवं ऋग्वेद पर भाष्यकार वैकट एवं माधव आदि ने संस्कृत ग्रंथों की रचना भी की। इस काल के प्रमुख ग्रंथ थे-कम्बन का रामावतार, जयन्गोन्दार का कलितुंग पर्णी, शेक्किल्लार का परियापुराणम्, पुलगेन्दी का नलबेम्ब, शेखर का तिरुट्टोन्डपूर्णम्, नंदी का तिरुविलाईयादल पूर्णम, अमुदनार का रामानुज नुरंदादि, तिरुकदेवर का शिवकोशीन्दमणि, बुद्धमित्र का विरासोलियम्, पबन्दी का नन्नौर (व्याकरण ग्रंथ), जैन ग्रंथों में तिक्करदेवर का जीवक चिन्तामणि तथा बौद्ध ग्रंथ कुण्डल केशी महत्वपूर्ण हैं।