मौर्यों के पतन से गुप्त साम्राज्य के आविर्भाव तक के काल को मौर्योत्तर काल कहा जाता है। इस काल में कोई बड़ा साम्राज्य तो स्थापित नहीं हुआ परन्तु यह युग ऐतिहासिक दृष्टिकोण से इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस युग में मध्य एशिया से सांस्कृतिक सम्बन्ध स्थापित हुए और विदेशी तत्वों का भारतीय संस्कृति में समावेश हुआ। मौर्योत्तर काल में किसी एक राजवंश का सम्पूर्ण भारत पर नियंत्रण नहीं था बल्कि अनेक क्षेत्रीय व स्थानीय राजवंशों को अलग – अलग क्षेत्र में शासन था। मौर्योत्तर काल में शासन करने वाले शासक विदेशी तथा भारतीय थे। यह वह समय था जब एक ओर मौर्यों की केन्द्रीयकृत शासन व्यवस्था बिखर रही थी और विदेशी राजबंश भारत पर निरन्तर आक्रमण कर रहे थे।
वहीं दूसरी ओर कई भारतीय राजवंश अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत थे। इस समय भारत की उत्तर – पश्चिम सीमा से यूनानी, शक, हूण व कुषाण जैसी विदेशी जातियों ने भारत में प्रवेश किया। समय के साथ ये विदेशी जैसे भारतीय भूमि की उपज ही बन गए और अन्त में उनकी संस्कृतियाँ भारत में ही आत्मसात होकर मुख्यधारा में विलीन हो गयीं। विदेशियों व भारतीयों के मध्य इस सांस्कृतिक आदान-प्रदान ने दोनों को एक-दूसरे की संस्कृतियों से अवगत कराया तथा अन्त में ये विदेशी भारतीय संस्कृति के रीति – रिवाजों को अपनाकर सदा के लिए भारतीय बन गए और इनके धर्म व संस्कृति भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग बन गए।