कनिष्क के दरबार में उच्चकोटि के दार्शनिक, वैज्ञानिक एवं साहित्यकार थे। उसके काल में साहित्य की विविध विधाओं का सर्वांगीण विकास हुआ। इस काल में पहली बार संस्कृत लेख लिखे गये। अश्वघोष, भास और शूद्रक इस विधा के महान साहित्यकार थे। कनिष्क के दरबार का सबसे महान व्यक्ति प्रसिद्ध कवि अश्वघोष था जिसने संस्कृत में बुद्धचरित नामक महाकाव्य की रचना कर उसे अमर कृति बना दिया। सौदरानन्द महाकाव्य, सूत्रालंकार और सारीपुत्र प्रकरण उसकी अन्य रचनाएँ थीं।
संस्कृत भाषा और उसकी उन्नति के साथ ह्म पालि व प्राकृत भाषा में भी इस युग में उत्कृष्ट रचनाएँ लिखी गईं। बौद्ध सम्प्रदाय की प्रगति के फलस्वरूप अनगिनत अवदानों की रचनाएँ भी हुईं जैसे दिव्यावदान आदि। शून्यवाद एवं सापेक्षवाद का प्रवर्तक नागार्जुन कनिष्क के दरबार की एक अन्य महान विभूति था। वह केवल दार्शनिक ही नहीं वैज्ञानिक भी था। इस प्रकार साहित्य के क्षेत्र में कुषाणों के काल में अभूतपूर्व प्रगति हुई।