गाँधीजी ने अपनी पुस्तक ‘हिन्द स्वराज्य’ में वर्तमान सभ्यता की भर्त्सना की है। यन्त्र के बारे में गाँधीजी के विचार रस्किन, टालस्टॉय और आर.सी. दत्ता के विचारों से प्रभावित थे। यन्त्र की तुलना गाँधी जी ने उस साधन से की है जो मानव या पशु श्रम का पूरक या उसकी कुशलता बढ़ाने वाला नहीं बल्कि उसका ही स्थान प्राप्त करने वाला है। यन्त्र में बुराइयाँ विद्यमान होने से गाँधीजी उसे अवांछनीय मानते थे।
उनके लिये यन्त्र में तीन मुख्य बुराइयाँ हैं-
- इसकी नकल हो सकती है।
- इसके विकास की कोई सीमा नहीं।
- यह मानव श्रम का स्थान ले लेता है।
इन बुराइयों के यन्त्रों में नैतिक और आर्थिक बुराइयाँ पाई जाती हैं।