महमूद गजनवी ने 1025 ई. में सोमनाथ मन्दिर पर आक्रमण किया। यह उसका सोलहवाँ आक्रमण था। महमूद के आक्रमण की सूचना सुनकर राजा भीमदेव अपने अनुयायिपों सहित राजधानी छोड़कर भाग गया किन्तु सोमनाथ की साधारण जनता और पुजारी अपने स्थानों पर डटे रहे क्योंकि उनका विश्वास था कि भगवान सोमनाथ भी उपस्थिति के कारण वे लोग पूर्णतया सुरक्षित हैं। सोमनाथ के लोगों ने पहले तो आक्रमणकारियों का विरोध किया परन्तु बाद में आक्रमणकारी मन्दिर में प्रवेश कर गए। महमूद ने बिना किसी प्रतिरोध के नगर पर अधिकार कर लिया। महमूद ने स्वयं सोमनाथ की मूर्ति को तोड़ा तथा पचास हजार से अधिक स्त्री – पुरुषों को मौत के घाट उतार दिया। मूर्तियों के टुकड़ों को गजनी, मक्का व मदीना भिजवाकर वहाँ की प्रमुख मस्जिदों की सीढ़ियों के नीचे डलवा दिया।