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पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गौरी के बीच हुए संघर्ष का उल्लेख कीजिए। पृथ्वीराज चौहान की पराजय के क्या कारण थे?

अथवा

पृथ्वीराज और मुहम्मद गौरी के मध्य संघर्ष का उल्लेख करते हुए उसकी पराजय के कारणों का वर्णन कीजिए।

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मुहम्मद गौरी के आक्रमण के समय भारत में दिल्ली व अजमेर पर पृथ्वीराज चौहान (तृतीय) का शासन था। जो इतिहास में ‘रायपिथौरा’ के नाम से प्रसिद्ध है। पृथ्वीराज का जन्म 1166 ई. में हुआ था। वह अपने पिता सोमेश्वर की मृत्यु के बाद ग्यारह वर्ष की आयु में चौहान साम्राज्य का उत्तराधिकारी बना। एक वर्ष तक माता के संरक्षण में रहने के बाद 1178 . ई. में पृथ्वीराज ने शासन की बागडोर अपने हाथों में ले ली।

1. पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गौरी के बीच संघर्ष: गजनी का गवर्नर नियुक्त होने के बाद मुहम्मद गौरी ने 1175 ई. में मुल्तान पर आक्रमण का अधिकार कर लिया। इसके बाद उसने गुजरात, सियालकोट और लाहौर के युद्धों में विजय हासिल कर अपनी शक्ति का परिचय दिया। राजस्थानी स्रोतों के अनुसार इस दौरान उसकी पृथ्वीराज चौहान के साथ अनेक बार लड़ाईयाँ हुई और हर बार उसे पराजय का सामना ही करना पड़ा। पृथ्वीराज रासो में इक्कीस तथा हम्मीर महाकाव्य में सात बार गौरी पर पृथ्वीराज की विजयों की दावा किया गया है। दोनों के मध्य दो निर्णायक युद्ध हुए।

2. तराइन का प्रथम युद्ध (1191 ई.): 1191 ई. में लाहौर से रवाना होकर मुहम्मद गौरी तबर हिन्द नामक स्थान पर अधिकार करते हुए तराइन (हरियाणा) तक पहुँच गया। यहाँ दोनों पक्षों के बीच भयंकर युद्ध हुआ जिसमें पृथ्वीराज चौहान के दिल्ली सामन्त गोविन्दराज ने अपनी बरछी के वार से मुहम्मद गौरी को घायल कर दिया। घायल गौरी अपनी सेना सहित गजनी भाग गया। पृथ्वीराज ने तबर हिन्द पर अधिकार कर काजी जियाउद्दीन को बन्दी बना बना लिया जिसे बाद में एक बड़ी धनराशि के बदले रिहा कर दिया गया।

3. तराइन का द्वितीय युद्ध (1192 ई.): एक वर्ष बाद मुहम्मद गौरी अपनी सेना के साथ तराइन के मैदान में पुन: आ धमका। पृथ्वीराज उसका मुकाबला करने पहुँच गया किन्तु गौरी ने इस बार अपने शत्रु को सन्धि-वार्ता के झाँसे में फंसा लिया। कई दिन तक सन्धि – वार्ता चलने के कारण चौहान सेना निश्चित होकर आमोद – प्रमोद में डूब गई। इसका फायदा उठाकर गौरी ने एक रात्रि अचानक आक्रमण कर दिया। राजपूत सेना इस अप्रत्याशित आक्रमण को झेल नहीं पाई और पराजित हुई।

पराजित पृथ्वीराज चौहान को सिरसा के पास सरस्वती नामक स्थान पर बन्दी बना लिया गया। पृथ्वीराज रासो के अनुसार, “बन्दी पृथ्वीराज को गौरी अपने साथ गजनी ले गया। जहाँ शब्द भेदी बाण के प्रदर्शन के समय पृथ्वीराज ने गौरी को मार डाला।” जबकि समकालीन इतिहासकार हसन निजामी के अनुसार, तराइन के द्वितीय युद्ध के बाद पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद गौरी के अधीनस्थ शासक के रूप में अजमेर पर शासन किया था। निजामी के कथन के पक्ष में एक सिक्के का भी सन्दर्भ दिया जाता है जिसके एक तरफ मुहम्मद बिन साम और दूसरी तरफ पृथ्वीराज नाम अंकित है।

पृथ्वीराज चौहान की पराजय के कारण

विजेता होने के बावजूद पृथ्वीराज चौहान में दूरदर्शिता व कूटनीति का अभाव था। उसने अपने पड़ोसी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित नहीं किए अपितु उनके साथ युद्ध करके शत्रुता मोल ले ली। इसी कारण मुहम्मद गौरी के संघर्ष में उसे उनका कोई सहयोग नहीं मिला। 1178 ई. में जब मुहम्मद गौरी ने गुजरात के शासक भीमदेव द्वितीय पर आक्रमण किया था, उस समय पृथ्वीराज ने गुजरात की कोई सहायता न कर एक भूल की।

तराइन के प्रथम युद्ध में पराजित होकर भागती तुर्क सेना पर आक्रमण न करना भी उसकी एक भयंकर भूल सिद्ध हुई। यदि उस समय शत्रु सेना पर प्रबल आक्रमण करतो तो मुहम्मद गौरी भारत पर पुनः आक्रमण करने के बारे में कभी नहीं सोचता। संयोगिता के साथ विवाह करने के बाद उसने राजकार्यों की उपेक्षा कर अपना जीवन विलासिता में व्यतीत करना प्रारम्भ कर दिया।

पृथ्वीराज चौहान का मूल्यांकन

पृथ्वीराज एक वीर और साहसी शासक था। अपने शासनकाल के प्रारम्भ से ही वह युद्ध करता रहा जो उसके अच्छे सैनिक और सेनाध्यक्ष होने को प्रमाणित करता है। अनेक युद्धों में सफलता प्राप्त कर उसने ‘दलपंगुल’ (विश्वविजेता) की उपाधि धारण की। तराइन के द्वितीय युद्ध में मुहम्मद गौरी द्वारा छल-कपट का सहारा लेने से पूर्व वह किसी भी लड़ाई में नहीं हारा था। एक विजेता के साथ-साथ वह विद्यानुरागी था। उसके दरबार में अनेक विद्वान रहते थे जिनमें – विद्यापति गौड़, वागीश्वर, जनार्दन, जयानक, विश्वरूप, आशीधर आदि प्रमुख थे। चन्दबरदाई उसका राजकवि था जिसका ग्रन्थ ‘पृथ्वीराज रासो’ हिन्दी साहित्य का प्रथम महाकाव्य माना जाता है।

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