Use app×
QUIZARD
QUIZARD
JEE MAIN 2026 Crash Course
NEET 2026 Crash Course
CLASS 12 FOUNDATION COURSE
CLASS 10 FOUNDATION COURSE
CLASS 9 FOUNDATION COURSE
CLASS 8 FOUNDATION COURSE
0 votes
124 views
in History by (47.0k points)
closed by

शिवाजी के उपरान्त पेशवाओं का इतिहास लिखिए।

1 Answer

+1 vote
by (52.8k points)
selected by
 
Best answer

शिवाजी के कमजोर उत्तराअधिकारियों के समय मराठा साम्राज्य की बागडोर उनके पेशवा (प्रधानमन्त्री) के हाथों में आ गई। पेशवाओं के शासन का प्रारम्भ बालाजी विश्वनाथ के समय हुआ।

1. बालाजी विश्वनाथ (1713 – 20 ई.)

बालाजी विश्वनाथ प्रथम पेशवा थे जिसे इस पद पर मराठा शासक शाहू द्वारा 1713 ई. में नियुक्त किया गया था। इसके समय में सैयद बन्धु अब्दुल्ला और हुसैन अली दिल्ली के शासक निर्माता थे। सैयद बन्धुओं ने बहादुर शाह प्रथम को हटाकर फर्रुखासियर को गुगल सिंहासन पर बैठाया था किन्तु वह शीघ्र ही इन दोनों भाइयों के खिलाफ षड्यन्त्र करने लगा। दक्खन में मौजूद मीरबख्शी हुसैनअली को जब इस षड्यन्त्र की जानकारी हुई तो उसने फर्रुखासियर पर प्रहार करने के लिए मराठा शासक शाहू के साथ 1719 ई. में एक सन्धि की। इस सन्धि के अनुसार

1. मुगलों द्वारा शाहू को वे सब प्रदेश लौटा दिए जाएँगे जो शिवाजी के ‘स्वराज’ नाम से प्रसिद्ध थे।

2. खानदेश, बरार, गोण्डवाना, हैदराबाद और कर्नाटक में मराठों द्वारा हाल ही में जीते गए प्रदेशों पर उनका अधिकार स्वीकार कर लिया जाएगा।

3. मराठों को दक्खन के छः प्रान्तों में चौथ और सरदेश मुखी नामक कर वसूल करने की अनुमति दे दी जायेगी। चौथ के बदले पन्द्रह हजार मराठा सैनिक मुगल सम्राट की सेवा में रहेंगे।

4. दिल्ली में नजरबन्द शाहू की माता यसूबाई व पत्नी सहित मराठा राजपरिवार के सदस्यों को मुक्त कर वापिस भेज दिया जाएगा।

हुसैन अली के दिल्ली की तरफ प्रस्थान करने पर सन्धि के अनुसार बानाजी विश्वनाथ व खण्डेरा व धनादे के नेतृत्व में पन्द्रह हजार मराठ्य सैनिकों ने उसका साथ दिया। सैय्यद बन्धुओं ने फर्रुखसियर को अपदस्त कर ‘रफी-उल-दरजात’ को मुगल बादशाह बना दिया जिसने उपरोक्त सन्धि को स्वीकृत प्रदान कर दी। दक्खन में चौथ और सरदेशमुखी भी वसूली के अधिकार प्राप्त करना बालाजी विश्वनाथ की बहुत बड़ी सफलता थी। उसे मराठा साम्राज्य का द्वितीय संस्थापक (संस्थापक शिवाजी) कहा जाता है।

2. पेशवा बाजीराव (1720 – 40 ई.): पेशवा बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु के बाद उसके बड़े पुत्र बाजीराव (1720 – 40 ई.) को पेशवा पद पर नियुकत किया गया। इस समय उसकी आयु मात्र बीस वर्ष थी मुगल साम्राज्य की शोचनीय दशा का लाभ उठाकर वह उसके अधिक से अधिक प्रदेशों को छीन लेना चाहता था। उसने अपनी तर्कपूर्ण व्याख्या द्वारा यह कहते हुए शाहू का समर्थन हासिल कर लिया। कि हमारे लिए यही समय है। कि हम विदेशियों को देश से निकालकर कीर्ति प्राप्त कर लें।

हमें सूखे वृक्ष की जड़ों पर प्रहार करना चाहिये शाखाएँ तो अपने आप गिर जायेंगी। पेशवा की योजना से प्रभावित होकर शाहू ने कहा, “तुम मराठा पताका को हिमालय की चोटी पर फहरा देंगे। तुम वास्तव में योग्य पिता के योग्य पुत्र हो।”अपनी नीति के अनुसार बाजीराव ने नर्मदा पार का 1724 ई. में मालवा जीत लिया। शाही सेवा में मौजूद जयपुर का शासक सवाई जयसिंह मराठ से सहानुभति रखने के कारण शीघ्र ही पेशवा का मित्र बन गया। इस कारण पेशवा को बहुत कम विरोध का सामना पड़ा।

पेशवा को सबसे जटिल समस्या का सामना के सबसे शक्तिशाली सरदार ‘नजाम-उल’ सम्बन्धों को व्यवस्थित करने में काना पड़ा। निजाम स्वयं को दक्खन या न्यायोचित शासक मानता था। इस क्षेत्र में मराठा अभियानों के कारण वह उन्हें अपना सबसे बड़ा शत्रु समझने लगा। इस कारण उसने 1917 ई. में सन्धि का उल्लंघन करना प्रारम्भ कर दिया और शाहू के स्थान पर उसके विरोधी शम्भाजी को मराठा साम्राज्य के मुखियों के रूप में मान्यता प्रदान कर दी मार्च 1728 ई. को औरंगाबाद के पास पात्नखेड़ नामक स्थान पर पेशवा ने निजाम की सेनाओं को पराजित कर उसे मुंगी शिवगाँव की सन्धि पर हस्ताक्षर के लिए बाध्य कर दिया।

3. सन्धि की शर्ते – इसे सन्धि के अनुसार:

1. निजाम ने शम्भा जी की सुरक्षा की जिम्मेदारी छोड़कर उसे पन्हाला भेजना स्वीकार कर लिया।

2. छीने गए मराठा प्रदेश तथा मराठा कैदियों को छोड़ देने का निर्णय लिया गया।

3. 1719 ई. की सन्धि के अनुसार शाहू के चौथ तथा सरदेशमुखी कर भी वसूली के अधिकार को मान लिया।

कुछ समय बाद चौथ और सरदेशमुखी के बदले पेशवा ने प्रतिज्ञा कर ली कि वह निजाम के प्रदेशों पर आक्रमण नहीं करेगा और निजाम ने मराठों के उत्तरी भारत पर आक्रमण में तटस्थ रहना स्वीकार कर लिया। अब पेशवा ने उत्तर भारत पर अपना ध्यान केन्द्रित करते हुए 1728 ई. में मालवा और बुन्देलखण्ड के मुगल प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। मार्च 1737 ई. में अवध के सूबेदार शाइस्ताखाँ ने मराठा सेनापति मल्लहारराव होल्करको पराजित किया और इस विजय की डींग मारते हुए दिल्ली में सूचना भेजी कि उसने मराठों को चम्बल के पार खदेड़ दिया। बाजीराव इस विजय का खण्डन करने के लिए चौदह दिन का सफर मात्र दो दिन में तय कर दिल्ली पर टूट पड़ा। इस आक्रमण से भयभीत मुगल सम्राट को बाजीराव ने सन्देश भेजा कि उसके अभियान का उद्देश्य कुछ प्राप्त करना नहीं अपितु सिर्फ यह दिखाना है कि वह अभी जिन्दा है।

दिल्ली से लौटने के बाद पेशवा ने निजाम को पराजित कर 17 जनवरी, 1738 को सराय की सन्धि करने के लिए बाध्य किया। इस सन्धि के अनुसार उसने सम्पूर्ण मालवा तथा नर्मदा से लेकर चम्बल तक में प्रवेश को बाजीराव के अधिपत्य में छोड़ दिया। 1740 ई. में बाजीराव बने ‘निजाम-उल-मुल्क’ के द्वितीय पुन नासिरजंग को परस्त का मुंगी शिवगाँव की सन्धि पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य किया। इसके अनुसार नासिरजंग ने हॉडिया और खरगाँव के जिले मराठों को सौंप दिए। 8 मई, 1740 ई. को नर्मदा नदी के किनारे रावर नामक स्थान पर अचानक बाजीराव की मृत्यु हो गई।

Related questions

Welcome to Sarthaks eConnect: A unique platform where students can interact with teachers/experts/students to get solutions to their queries. Students (upto class 10+2) preparing for All Government Exams, CBSE Board Exam, ICSE Board Exam, State Board Exam, JEE (Mains+Advance) and NEET can ask questions from any subject and get quick answers by subject teachers/ experts/mentors/students.

Categories

...