मूल अधिकार: वे अधिकार जो व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए अनिवार्य होने के कारण संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किए जाते हैं। मूल अधिकार कहलाते हैं। इन अधिकारों में राज्य द्वारा हस्तक्षेप नही किया जा सकता। भारतीय संविधान में उल्लिखित मूल अधिकार-वर्तमान में भारतीय संविधान में 6 मूल अधिकारों का उल्लेख किया गया है जिनका विवरण निम्नलिखित है-
- समानता का अधिकार
- स्वतंत्रता का अधिकार
- शोषण के विरुद्ध अधिकार
- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
- सांस्कृतिक शिक्षा का अधिकार
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार।
(1) समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से 18)- संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 तक इस अधिकार का वर्णन है। इस अधिकार द्वारा समाज में समानता स्थापित की गई है।
इसके अन्तर्गत निम्नलिखित अधिकारों का उल्लेख किया गया है–
- कानून के समक्ष समानता (अनुच्छेद 14)
- मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध (अनुच्छेद 15)
- लोक नियोजन के विषय में अवसरों की समानता (अनुच्छेद 16)
- अस्पृश्यता का अंत (अनुच्छेद 17)
- उपाधियों का अंत (अनुच्छेद 18)
(2) स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22): संविधान के अनुच्छेद 19 से 22 तक नागरिकों की स्वतंत्रता के अधिकार का वर्णन किया गया है।
इसके अन्तर्गत नागरिकों को निम्नलिखित स्वतंत्रताएँ दी गई हैं-
- विचार व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19 (1) (क)
- अस्त्र-शस्त्ररहित शांतिपूर्ण सम्मेलन की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19 (1) ख)
- संघ व समुदाय निर्माण की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1) (ग)
- सर्वत्र आने-जाने व निवास की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19 (1) (घ)
- निवास की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1) ङ)
- वृत्ति व व्यापार की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19 (1) छ) इनके अतिरिक्त अनुच्छेद 20, 21, 22 द्वारा व्यक्तिगत मौलिक स्वतंत्रताओं की व्यवस्था की गई है
- अपराधों के लिए दोष सिद्धि के विषय में संरक्षण (अनुच्छेद 20)
- जीवन व व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण (अनुच्छेद 21)
- बन्दीकरण में संरक्षण (अनुच्छेद 22)
(3) शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 व 24): भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 व 24 में इस अधिकार का वर्णन किया गया है।
इसके अन्तर्गत निम्नलिखित संरक्षण प्रदान किए गए हैं-
- मानव के क्रय-विक्रय व बेगार पर रोक (अनुच्छेद 23)
- बालश्रम का निषेध (अनुच्छेद 24)
(4) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 – 28): भारत एक बहुधर्मी देश है। इस देश में सभी धर्मों के लोग रहते हैं। संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 में प्रत्येक व्यक्ति को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान किया गया है।
इसके अन्तर्गत निम्नलिखित अधिकार सम्मिलित हैं-
- अन्त:करण की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25)
- धार्मिक मामलों का प्रबन्ध करने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 26)
- राजकीय संस्थाओं में धार्मिक शिक्षण पर रोक (अनुच्छेद 28)
(5) सांस्कृतिक शिक्षा सम्बन्धी अधिकार (अनुच्छेद 29 व 30): भारतीय संविधान की धारा 29 व 30 में नागरिकों के इस अधिकार की व्याख्या की गई है।
इसके अन्तर्गत निम्नलिखित बातें सम्मिलित हैं-
- अल्पसंख्यक वर्गों के हितों की सुरक्षा (अनुच्छेद 29)
- अल्पसंख्यक वर्ग को शिक्षण संस्थाओं की स्थापना व संचालन का अधिकार (अनुच्छेद 30) संविधान में 86 वें संशोधन अधिनियम द्वारा 21-ए को धारा 21 के पश्चात् जोड़कर शिक्षा को मौलिक अधिकार को दर्जा दिग्ना गया है। इसके अनुसार राज्य के 6 से 14 वर्ष की आयु के समस्त बच्चों को निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा कानूनी रूप से प्रदान करनी होगी। इन बच्चों को शिक्षा के अवसर प्रदान करना माता-पिता या अभिभावक की जिम्मेदारी है।
(6) संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32) – भारतीय संविधान का अनुच्छेद 32 सभी नागरिकों को संवैधानिक उपचारों का अधिकार प्रदान करता है। इसके अन्तर्गत मूल अधिकारों को लागू करने के लिए देश के उच्चतम न्यायालय का द्वार खटखटाने का अधिकार प्रदान किया गया है। यदि नागरिकों के मूल अधिकारों का उल्लंघन किया जाता है।
तो वह न्यायालय से समुचित उपचार पाने के लिए प्रार्थना पत्र दे सकता है। विधायिका द्वारा निर्मित कानून एवं कार्यपालिका द्वारा क्रियान्वित गतिविधियाँ जो मूल अधिकारों के विरुद्ध हों, उन्हें न्यायालय द्वारा अवैध घोषित किया जा सकता है।
सर्वोच्च व उच्च न्यायालय द्वारा मूल अधिकारों की रक्षा के लिए निम्न पाँच प्रकार के लेख जारी किए जा सकते हैं-
- बंदी प्रत्यक्षीकरण लेख
- परमादेश
- प्रतिषेध लेख
- उत्प्रेषण लेख
- अधिकार पृच्छा।
डॉ. अम्बेडकर ने इस अधिकार को संविधान का हृदय व आत्मा बताया है।