मूल कर्तव्यों की उपयोगिता/महत्व को निम्न आधारों पर विवेचित किया जा सकता है-
(1) देश की सुरक्षा की व्यवस्था – नागरिकों के मूल कर्तव्यो में यह निर्देशित किया गया है कि वे संकटकाल में तन, मन, धन से राष्ट्र की सुरक्षा में योगदान दें। यदि नागरिक इस कर्तव्य का ईमानदारी से पालन करें तो राष्ट्र की सुरक्षा व्यवस्था सुदृढ़ हो सकती है।
(2) अयोग्यता तथा अक्षमता को दूर करना – भारत में प्रत्येक क्षेत्र में अयोग्यता तथा अक्षमता देखने को मिलती है। इससे राष्ट्र को भारी हानि होती है। अत: प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य निश्चित किया गया है कि वह प्रत्येक क्षेत्र में योग्यता तथा श्रेष्ठता प्राप्त करने का प्रयत्न करे इससे समाज तथा राष्ट्र को अत्यधिक लाभ होगा।
(3) प्रदूषण को दूर करने व स्वास्थ्य की रक्षा के लिए महत्व – वातावरण को दूषित होने से बचाने के लिए जो मूल कर्तव्य निश्चित किये गए हैं, वह बड़े लाभकारी तथा व्यावहारिक हैं। प्रदूषण को दूर करने तथा नागरिकों की स्वास्थ्य रक्षा के लिए इस कर्तव्य का विशेष महत्व है।
(4) लोकतंत्र को सफल बनाने में सहायक – भारत में लोकतांत्रिक शासन प्रणाली को अपनाया गया है। मूल कर्तव्यों को संविधान में स्थान देने से लोकतांत्रिक व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में सहायता मिलेगी।
(5) स्पष्टता तथा व्यावहारिकता – संविधान में कुछ कर्त्तव्य स्पष्ट और व्यावहारिक हैं; जैसे-संविधान का आदर करना, महिलाओं का सम्मान करना तथा प्राकृतिक वातावरण को दूषित होने से बचाना इत्यादि।
(6) अंधविश्वासों व रूढ़ियों को दूर करने में सहायक – मूल कर्तव्यों में नागरिक के कर्तव्य का अत्यधिक महत्व है। जिन सिंद्धातों को संविधान में स्थान दिया गया है, जिन्हें मूलभूत बताया गया है। उनके अनुसार कार्य करना राज्य का नैतिक कर्तव्य है। इन कर्तव्यों को न्यायालय के क्षेत्रधिकार से अलग रखने का उद्देश्य यही था कि राज्य समय, साधन तथा परिस्थितियों के अनुसार कार्य कर सके।