भारत में व्यवस्थापिका या संसद के द्वितीय सदन को राज्यसभा कहा जाता है। इसे उच्च सदन या स्थायी सदन या राज्यों के सदन की भी संज्ञा दी जाती है। यह एक स्थायी सदन है जिसका कभी विघटन नही होता।
राज्यसभा का गठन – राज्यसभा संसद का द्वितीय या उच्च सदन है। इसके गठन को निम्नलिखित तरह से स्पष्ट किया जा सकता है
1. सदस्य संख्या और निर्वाचन पद्धति-संविधान के अनुसार राज्यसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 हो सकती है परन्तु वर्तमान समय में यह संख्या 245 ही है इनमें से 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किये जाते हैं। ये ऐसे व्यक्ति होते हैं जिन्हें कला, साहित्य, विज्ञान, समाज सेवा या खेल के क्षेत्र में विशेष ज्ञान या अनुभव प्राप्त हो।
राज्य विधानमण्डलों द्वारा 233 सदस्य निर्वाचित होते हैं एवं इन सदस्यों को चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व की एकल संक्रमणीय पद्धति के अनुसार संघ के विभिन्न राज्यों और संघीय क्षेत्रों की विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा किया जाता है।
2. सदस्यों की योग्यताएँ-राज्यसभा के सदस्यों के लिये योग्यताएँ इस प्रकार हैं-
- वह भारत का नागरिक हो।
- उसकी आयु 30 वर्ष से कम न हो।
- वह ऐसी योग्यताएँ रखता हो जो संसद समय-समय पर निर्धारित करे।
- प्रत्याशी को उस राज्य का संसदीय मतदाता होना चाहिए जिससे वह चुनाव लड़ रहा है।
- वह सरकार के अधीन लाभ के पद पर न हो।
- वह पागल व दिवालिया न हो।
3. सदस्यों का कार्यकाल – राज्यसभा एक स्थायी सदन है, जो कभी भंग नहीं होता। इसके सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष है। राज्यसभा के एक तिहाई सदस्य प्रति दो वर्ष बाद सेवानिवृत्त हो जाते हैं।
4. गणपूर्ति – सदन में कुल सदस्यों के 1 / 10 वें भाग के उपस्थित होने पर सदन की बैठकों की गणपूर्ति हो जाती है।
5. प्रमुख पदाधिकारी – राज्यसभा के दो प्रमुख पदाधिकारी होते हैं-सभापति और उपसभापति। भारत का उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है और उसका कार्यकाल 5 वर्ष है। राज्यसभा अपने सदस्यों में से किसी एक को 6 वर्ष के लिए उपसभापति निर्वाचित करती है।
6. राज्यसभा की शक्तियाँ/कार्य – राज्यसभा की शक्तियों एवं कार्यों का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है
7. विधायी शक्तियाँ- लोकसभा के साथ – साथ राज्यसभा भी विधि निर्माण सम्बन्धी कार्य करती है। संविधान के द्वारा अवित्तीय विधेयकों के सम्बन्ध में लोकसभा और राज्यसभा दोनों को बराबर शक्तियाँ प्रदान की गई हैं।
8. संविधान संशोधन की शक्ति – संविधान संशोधन के सम्बन्ध में राज्यसभा को लोकसभा के समान ही शक्ति प्राप्त है। संशोधन प्रस्ताव पर संसद के दोनों सदनों में असहमति होने पर संविधान में संशोधन का प्रस्ताव गिर जायेगा।
9. वित्तीय शक्ति – राज्यसभा को कुछ वित्तीय शक्ति प्राप्त है यद्यपि इस सम्बन्ध में संविधान द्वारा राज्यसभा को लोकसभा की तुलना में निर्बल स्थिति प्रदान की गयी है। संविधान के अनुसार धन विधेयक पहले लोकसभा में ही प्रस्तावित किये जायेंगे। लोकसभा से स्वीकृत होने पर धन विधेयक राज्यसभा में भेजे जायेंगे, जिसके द्वारा अधिक से अधिक 14 दिन तक इस विधेयक पर विचार किया जा सकेगा। राज्यसभा धन विधेयक के सम्बन्ध में अपने सुझाव लोकसभा को दे सकती है, लेकिन यह लोकसभा की इच्छा पर निर्भर है कि वह उन प्रस्तावों को माने या न माने ।
10. कार्यपालिका सम्बन्धी शक्ति – संसदात्मक शासन व्यवस्था में मंत्रिपरिषद संसद के लोकप्रिय सदन के प्रति ही उत्तरदायी है।
अतः भारत में भी मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी है, राज्यसभा के प्रति नहीं। राज्यसभा के सदस्य मंत्रियों से प्रश्न पूछ सकते हैं और उनकी आलोचना भी कर सकते हैं, परन्तु इन्हें अविश्वास प्रस्ताव द्वारा मंत्रियों को हटाने का अधिकार नही हैं।
11. निर्वाचन सम्बन्धी एवं अन्य शक्तियाँ- उपर्युक्त शक्तियों के अतिरिक्त राज्यसभा को कुछ अन्य शक्तियाँ भी प्राप्त हैं जिनका प्रयोग वह लोकसभा के साथ मिलकर करती है।
ये शक्तियाँ व कार्य इस प्रकार हैं-
- राज्यसभा के निर्वाचित सदस्य राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेते हैं।
- राज्यसभा के सदस्य लोकसभा के सदस्यों के साथ मिलकर उपराष्ट्रपति का चुनाव करते हैं।
- राज्यसभा लोकसभा के साथ मिलकर राष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश एवं कुछ पदाधिकारियों पर महाभियोग लगा सकती है। महाभियोग का प्रस्ताव तभी पारित समझा जाता है, जब दोनों सदन इस प्रकार के प्रस्ताव को स्वीकार कर लें।
- राज्यसभा लोकसभा के साथ मिलकर बहुमत से प्रस्ताव पास कर उपराष्ट्रपति को उसके पद से हटा सकती है। उपराष्ट्रपति को पद से हटाने का प्रस्ताव प्रथम बार राज्यसभा में ही पारित होकर लोकसभा के पास जाता है।
12. राज्यसभा की विशिष्ट व अनन्य शक्तियाँ- राज्यसभा को निम्नलिखित ऐसे अन्य अधिकार भी प्राप्त हैं ज़ो लोकसभा को प्राप्त नहीं हैं और जिनका प्रयोग अकेले राज्यसभा ही करती है
- अनुच्छेद 249 के अनुसार राज्यसभा उपस्थित और मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के दोतिहाई बहुमत से राज्य सूची के किसी विषय को राष्ट्रीय महत्व का विषय घोषित कर सकती है।
- अनुच्छेद 312 के अनुसार राज्यसभा ही अपने दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पास कर नयी अखिल भारतीय सेवायें स्थापित करने का अधिकार केन्द्रीय सरकार को दे सकती है।
- यदि आपातकालीन उद्घोषणा के समय लोकसभा का विघटन हो गया हो, अथवा ऐसी उद्घोषणा के दो महीने के अन्दर वह विघटित हो जाए तो केवल राज्यसभा की स्वीकृति से ही आपातकालीन उद्घोषणा उस समय तक प्रभावी रह सकती है जब तक कि नई लोकसभा में उसकी पहली बैठक से एक माह के अन्दर वह स्वीकार या अस्वीकार न हो जाये।