शरीर को चलाने हेतु पेट का भरा होना आवश्यक है और पेट भरने के लिए अनेक कर्म करने पड़ते हैं। भिखारी से लेकर बड़े-बड़े लोग भी पेट की आग शान्त करने में लगे रहते हैं। इसलिए पेट की आग को बाङवाग्नि से बड़ी कहा गया है क्योंकि बाङवाग्नि प्रयत्न द्वारा शान्त हो जाती है।