तुलसीदास कहते हैं कि कोई चाहे उन्हें धूत (घर से निष्कासित) कहे, चाहे साधु-संन्यासी कहे, या फिर किसी भी जाति-विशेष के नाम से पुकारे। तुलसीदास की तत्कालीन स्थिति और अभी की वर्तमान परिस्थिति दोनों में ही जाति समस्या बहुत ही जटिल व बड़ी समस्या है। उस समय तुलसीदास की प्रसिद्धि एवं भक्ति देख कर कुछेक जाति विशेषज्ञ विद्वान तुलसीदास को नीचा व निम्न जाति का दिखाने हेतु दुष्प्रचार करते थे। उन्हीं लोगों को सटीक जवाब देने हेतु तुलसीदास ने कहा कि मुझे न किसी से कोई लेना-देना है। न किसी की बेटी के साथ, बेटा ब्याह कर जाति बिगाड़नी है। न मैं धर्म को लेकर कट्टरपंथी हूँ। मैं माँग कर, मस्जिद में सोकर तथा भगवान राम की भक्ति-आराधना कर अपना जीवन गुजार सकता हूँ।