तुलसीदास रामभक्त कवि, युग सचेतक एवं समन्वयवादी कवि थे। उनका लिखित साहित्य सर्वकालिक है। उन्होंने भक्ति के साथ-साथ वर्तमान परिस्थितियों, समस्याओं एवं विद्रूपताओं को हर सम्भव अपने साहित्य में उतारा है। तुलसी ने वर्षों पहले जो कुछ भी कहा वह आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उस समय था। उन्होंने अपने समय की मूल्यहीनता, नारी की स्थिति और आर्थिक समस्याओं का विकट चित्रण किया है।
इनमें से सभी समस्याएँ आज भी ज्यों की त्यों हैं। आज भी लोग अपने जीवन-यापन हेतु, उच्च स्तरीय जीवन हेतु गलत-सही सभी कार्य करते हैं। देखा-देखी व होड़-प्रतिस्पर्धा ने मनुष्य के सात्विक जीवन को बहुत नीचे गिरा दिया है। नारी के प्रति नकारात्मक सोच व दुर्भावनाएँ आज भी विद्यमान हैं। जाति और धर्म के नाम पर घृणित खेल खेले जाते हैं। भेदभाव व छुआछूत की संकीर्ण सोच आज भी विकास का मार्ग अवरुद्ध करती है। मनुष्यों में 'पर' की अपेक्षा 'स्व' की प्रवृत्ति अधिक जोर पकड़ती जा रही है। कल्याण की भावना से आज का व्यक्ति कोसों दूर है। इस प्रकार युगीन समस्याएँ आज भी वैसी ही हैं जैसी कल थीं।