कवि उमाशंकर जोशी छोटे चौकोर खेत को कागज का पन्ना कहते हैं। कवि अपनी इस भावना द्वारा यह बताना चाहते हैं कि कवि का कार्य भी एक किसान के कार्य के समान ही होता है। कविता रचना करना, खेती की तरह ही श्रम साध्य कार्य है। कागज के पन्ने और खेत के आकार में भी समानता है जैसे बुआई, अंकुरण और पौधों के पनपने तथा फल-फूल देने में है। भाव यह है कि कविता भी शब्दों में भाव के बीजों द्वारा अंकुरित होती है।
कल्पना के सहारे विकसित होती है। अपने रूप-रंग-सौंदर्य तथा भाव प्रसार व आनंद के प्रस्फुटन से सार्वकालिक होती है। उस रचना का आनन्द सदा-सर्वदा लिया जा सकता है। जिस प्रकार अपनी खेती की उन्नति को देख किसान हर्षित होता है उसी प्रकार कवि भी चौकोर पन्ने पर लिखी रचना के भाव-संदेश को देखकर प्रसन्न होता है।