भक्तिन देहाती थी। सेविका रूप में आ जाने से महादेवी का खाना-पहनना देहाती ढरे का हो गया। भक्तिन ने देहाती खाने की विशेषताएँ बता-बताकर उनके खाने की आदत बदल डाली। उसके कारण लेखिका को रात में मकई के दलिए के साथ मट्ठा पीना पड़ा। बाजरे के तिल मिलाकर बने पुए खाने पड़े और ज्वार के भुने हुए भुट्टे की खिचड़ी खानी पड़ी। उसकी बनाई हुई सफेद महुए की लापसी को संसार के श्रेष्ठ हलवे से अधिक स्वादिष्ट मानकर खाना पड़ा। भक्तिन ने लेखिका को देहाती भाषा और कहावतें भी सिखा दीं। इस तरह महादेवी भी देहाती बन गईं।