इस तरह के उद्गारों से इस सामाजिक यथार्थ की ओर संकेत किया गया है कि विस्थापन का दर्द व्यक्ति को जीवन-भर सालता है। राजनैतिक कारणों से बँटवारा हो जाने पर भी सीमा-रेखाएँ लोगों के मनों को विभाजित नहीं कर पाती हैं। जन्म-भूमि का लगाव सदा बना रहता है। विभाजन हुए काफी वर्ष हो जाने पर भी लोगों को भारत-पाक का विभाजन अस्वाभाविक और कृत्रिम लगता है।