'सिल्वर वैडिंग' कहानी में मुख्य रूप से पुरानी पीढ़ी और नयी पीढ़ी के टकराहट का चित्रण किया गया है। यशोधर बाबू प्राचीन मान्यताओं के समर्थक हैं और किशनदा के मानस-पुत्र हैं। वे किशनदा को आदर्श मार्ग-प्रदर्शक मानते हैं और उन्हीं के दिखाए मार्ग से चिपके रहते हैं जबकि उनके बच्चे अर्थात् नए बच्चे पश्चिमी संस्कृति को अंधाधुंध अपना रहे हैं। इससे उनके पारिवारिक परिवेश में पीढ़ियों का द्वन्द्व रहने लगा है।
पुरानी पीढ़ी हाशिये पर खड़ी लाचार नज़र आने लगी है। यही कहानी की मूल संवेदना है। लेखक बिना कहे नई पीढ़ी को संदेश देना चाहता है कि वह अपने पूर्वजों का, पारिवारिकता का और परंपराओं का सम्मान करे। उन्हें तिलांजलि न दे तथा नई पीढ़ी नई चुनौतियों के अनुसार ढलना सीखे।