'जूझ' आत्मकथात्मक अंश में छोटी आयु में बालक आनन्द विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष करता है। उसके मन में संघर्ष करने की इच्छा इतनी बलवंती है कि वह अपने लक्ष्य को पाने के लिए असंभव से प्रयत्न भी कर डालता है। वह अपने पिता द्वारा पढ़ाई छुडाए जाने पर आगे पढ़ाई करने की इच्छा से पूरित होकर अपनी लाचार माँ से बात करता है लेकिन माँ को निराश देखकर उसे संभावित रास्ता निकाल देता है। वह अपनी माँ के साथ दत्ता जी राय के घर जाता है। उनमें अपने मन की बात अपनी माँ से कहलवाकर पाठशाला जाने की बात पर उनसे आज्ञा प्राप्त कर लेता है। पाठशाला में पहुँचने पर उसे घोर निराशा तथा अपमान का सामना करना पड़ता है। परन्तु वह 'जूझ' के आधार पर रास्ता निकाल लेता है। जल्दी ही वह अपने परिश्रम के कारण शिक्षक का चहेता छात्र ही नहीं बल्कि कवि बन जाता है। उसकी यह प्रगति उसके जुझारू या संघर्षशील की ही देन है।