मराठी के प्रसिद्ध कथाकार डॉ. आनन्द यादव के आत्मकथात्मक उपन्यास से संकलित अंश में एक किशोर के देखे और भोगे गए ग्रामीण जीवन के खुरदरे यथार्थ और उसके रंगारंग परिवेश का अत्यन्त विश्वसनीय जीवंत चित्रण हुआ है। पिता अपनी मौज-मस्ती के लिए अपने बालक की पढ़ाई छुड़ा कर खेती के काम में लगा देता है। लाचार माँ उसके साथ सहानुभूति रखकर उसके भविष्य को सुधारने में सहयोग करती है। कहानी की मूल संवेदना निम्न मध्यमवर्गीय ग्रामीण समाज और लड़ते-जूझते किसान-मजदूरों के संघर्षमय जीवन की झांकी प्रस्तुत कर एक किशोर की लालसा एवं अकुलाहट की मार्मिक व्यंजना करना है तथा उनसे संघर्षशील बने रहने की सत्प्रेरणा देना है।