सौंदलगेकर पाठशाला में मराठी भाषा के शिक्षक थे। उनसे प्रेरणा लेकर आनन्द यादव भी कविता रचने लगे क्योंकि लेखक को उन्होंने ही लय, गति, ताल आदि के बारे में ज्ञान कराया था। साथ में वे भी मराठी भाषा में कविता रचते थे और गाकर सुनाते थे। इसके अलावा वे यह भी कहते थे कि कवि को शुद्ध लेखन करना क्यों जरूरी होता है, शुद्ध लेखन के नियम क्या हैं? इसी आधार पर लेखक कविता रचकर उन्हें दिखाता था और वे आवश्यक सुधार उसमें कर देते थे। मराठी शिक्षक लेखक को पढ़ने के लिए मराठी कवियों के काव्य-संग्रह भी देते थे और उन कवियों के संस्मरण भी सुनायां करते थे। इस प्रकार लेखक मराठी शिक्षक के बहुत नजदीक पहुँच गया था और मराठी शिक्षक के सम्पर्क में रहने से लेखक की मराठी भाषा सुधरने लगी।