मराठी शिक्षक कक्षा में बड़े तन्मय होकर पढ़ाते थे और बड़ी तन्मयता के साथ कविता गाकर सुनाते थे। वे स्वयं कवि थे। लेखक को विश्वास हुआ कि कवि अपने जैसा ही एक हाड़-माँस का, क्रोध-लोभ का मनुष्य होता है। इस कारण लेखक को भी लगा मैं भी कविता कर सकता हूँ। साथ ही मास्टर शिक्षक के दरवाजे पर छाई हुई मालती की लता पर उन्होंने कविता लिखी थी। उस बेल और कविता को स्वयं लेखक ने देखा था। उससे उसे लगा कि अपने आस पास अपने गाँव और अपने खेतों में भी ऐसे दृश्य हैं जिन पर कविता लिखी जा सकती है। लेखक यह सब अनजाने में ही तुकबन्दी करता रहा और जोर-जोर से गुनगुनाता रहा। कविता रचकर लेखक शिक्षक को भी दिखाता रहा। इन सब बातों से लेखक को कविता रचने का विश्वास होने लगा।