पाठशाला पहँच कर जब लेखक कक्षा में गया तो गली के दो लडकों को छोडकर कोई भी उसकी पहचान का नहीं था। लेखक को उन्हीं के साथ बैठना पड़ा। लेखक उन्हें कम अक्ल का समझता था। इससे उसका मन खट्टा हो गया लेकिन क्या करता? वह एक बैंच के कोने में बैठा रहा। लेखक को बैठा देखकर के कक्षा के शरारती लड़के ने उसकी खिल्ली उड़ाई और उसका गमछा छीन कर मास्टर की मेज पर रख दिया। छुट्टी के बीच उनकी धोती की दो बार लॉग खींचने की भी कोशिश की गयी।
घर लौटते समय लेखक चिन्तित था कि कक्षा में लड़के उसकी खिल्ली उड़ाते हैं, उसका गमछा तथा धोती खींचते हैं। इससे तो अच्छा पाठशाला न जाकर खेती करना ही है। लेकिन उसका मन नहीं माना और वह दूसरे दिन फिर पाठशाला चला गया। अन्त में मंत्री नामक कक्षा-अध्यापक के आतंक के कारण शरारती लड़कों से उसका पिंड छूट गया।