इस पाठ में लेखक ने जिस सुन्दर क्रमबद्धता से मुअनजो-दड़ो के खण्डहरों तथा अजायबघर में प्रदर्शित वस्तुओं का वर्णन किया है, वह इस तरह चित्रात्मक एवं अनुभूतिमय है कि उस स्थान को देखे बिना भी उस खण्डित नगर के दृश्य हमारी आँखों में साकार हो जाते हैं। इससे हमें अपनी प्राचीनतम सभ्यता एवं संस्कृति पर गर्व भी होता है। राजस्थान में ऐसे कई ऐतिहासिक स्थान हैं, जो अत्यधिक प्राचीन हैं तथा आज एकदम सूने पड़े हुए हैं। जयपुर के पास नाहरगढ़ और आमेर का पुराना किला इस प्रकार के स्थान हैं, जहाँ पर अब कोई निवास नहीं करता है।
ये स्थान दिन में पर्यटकों के कारण आबाद से लगते हैं, परन्तु रात्रि में एकदम वीरान हो जाते हैं। जयपुर का नाहरगढ़ का किला ऊँची पहाड़ी पर बना हुआ तथा काफी बड़ा है। इसके अन्दर के कक्ष, चौक एवं छतों पर जाने की सीढ़ियाँ चार सौ वर्ष पूर्व की वास्तुकला के प्रमाण हैं। यहाँ पर सुन्दर मूर्तियाँ भी हैं तो उकेरे-तरासे गये स्तम्भ भी हैं, जो कि अब धूल-पानी जम जाने और गँदले होने पर भी अच्छे लगते हैं और अपनी स्थापना-काल की सम्पन्नता को सूचित करते हैं।
नाहरगढ़ के मुख्य द्वार के बाहर चरणजी के मन्दिर तक जगह-जगह पुराने खण्डहरों के अवशेष, दीवारें, मकानों की मींवें तथा बिखरे हुए गढ़े गये पत्थरों के साथ ही पगडण्डी रूप में शेष रह गई उखड़ी हुई सड़कें दिखाई देती हैं, जो कि वहाँ पर कभी आबादी रही होंगी, इसका स्पष्ट संकेत देते हैं। राजाओं के उस काल के शासन में नाहरगढ़ और उसके आसपास का क्षेत्र चहल-पहल वाला रहा होगा, वहाँ पर सब तरह के लोग रहते होंगे, यह सहज अनुमान का विषय है।