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नदी, कुएँ, स्नानागार और बेजोड़ निकासी व्यवस्था को देखते हुए लेखक पाठकों से प्रश्न पूछता है कि क्या हम सिन्धु घाटी सभ्यता को 'जल-संस्कृति' कह सकते हैं? आपका जवाब लेखक के पक्ष में है या विपक्ष में? तर्क दें।

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मोहनजोदड़ो के समीप बहती हुई सिन्धु नदी, नगर में स्थित कुएँ, महाकुण्ड, स्नानागार तथा पानी निकासी की बेजोड व्यवस्था को देखकर लेखक ने सिन्धु घाटी सभ्यता को 'जल-संस्कृति' कहा है। हम लेखक के कथन से सहमत हैं।

इसके कारण निम्न हैं -

  1. संसार की सभी प्राचीन सभ्यताओं का विकास नदियों के किनारे हुआ, यह सर्वमान्य प्रमाण है। मोहनजोदड़ो के समीप भी सिन्धु नदी बहती थी।
  2. मुअनजो-दड़ो में पानी निकासी के लिए पक्की ईंटों की नालियाँ बनी हुई थीं, जो कि उस समय की नगर व्यवस्था की परिचायक थी।
  3. वहाँ पर पानी के लिए लगभग सात सौ कुएँ थे। एक महाकुण्ड था।
  4. महाकुण्ड के पास कुछ स्नानागार बने थे। वहाँ के खण्डहरों में बने स्नानागार स्पष्ट दिखाई देते थे, जो कि प्रायः सभी छोटे-बड़े घरों में बने हुए थे।
  5. नगर के मकानों की बसावट ऊँचे टीलों पर थी, जो कि बाहर के पानी के असर को रोकने के लिए की गई थी।

इन विशेषताओं को देखकर हम कह सकते हैं कि सिन्धु घाटी सभ्यता जल-संस्कृति का श्रेष्ठ प्रमाण है।

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