ऐन फ्रैंक की सोच थी कि औरतों को भी सैनिकों के समान सम्मानित दर्जा दिया जाना चाहिए। इस संबंध में उन्होंने लिखा है "कई देशों में तो उन्हें बराबरी का हक दिया जाने लगा है। कई लोगों ने, कई औरतों ने, और कुछेक पुरुषों ने भी इस बात को महसूस किया है कि इतने लंबे अरसे तक इस तरह की वाहियात स्थिति को झेलते जाना गलतर पर ऐन का मानना था कि आमतौर पर यद्ध में लडने वाले सैनिकों को जितनी तकलीफें एवं यन्त्रणा भोगनी पड़ती है, उससे कहीं अधिक तकलीफें औरतें बच्चे को जन्म देते समय झेलती हैं।
बच्चा जनने के बाद औरत का आकर्षण कम हो जाता है और कई बार पुरुष उस औरत एवं बच्चे को एक तरफ धकिया देता है। मानव जाति का विकास करने वाली औरत का वैसा सम्मान नहीं किया जाता जैसा कि सैनिकों का सम्मान किया जाता है। स्त्रियों के साथ ऐसा व्यवहार अनुचित है। सैनिकों के समान ही औरतों को सम्मान का दर्जा दिया जाना चाहिए।