आशा व्यक्ति को भ्रमित कर देती है, उसे बावला बना देती है। प्रेम में प्रेमी (स्त्री और पुरुष) विवेकहीन हो जाते हैं। प्रेम अन्धा होता है। देवसेना भी स्कन्दगुप्त के प्रेम में बावली हो गई थी। उसने बिना सोचे-समझे स्कन्दगुप्त से प्रेम किया और यह आशा मन में पाली-कि स्कन्दगुप्त उसे अपना लेगा। उसकी आशा उसके मन का पागलपन ही था। वह स्कन्दगुप्त का प्रेम नहीं पा सकी।