परागकोष का स्फुटन (Dehiscence of Anther) – परिपक्व परागकोष के मध्यस्तर (Middle layer) तथा टेपीटम (Tapetum) नष्ट हो जाते हैं। इसमें केवल बाहर की ओर बाह्यत्वचा (Epidermis) तथा अन्दर की ओर अन्तस्थीसियम (Endothecium) शेष रह जाती हैं। अन्तस्थीसियम की कोशिकाओं से जल वाष्प के रूप में उड़ता रहता है जिससे इन कोशिकाओं की पतली बाह्य भित्ति अन्दर की ओर सिकुड़ने लगती है जिससे स्टोमियम (Stomium) की कोशिकाओं पर दबाव उत्पन्न हो जाता है और परागकोष फट जाते हैं।
परागकोष का स्फुटन निम्नलिखित चार विधियों द्वारा होता हैं –
- अनुप्रस्थ स्फुटन (Transverse Dehiscence) – इस प्रकार के स्फुटन में परागकोष की पालियाँ परागकोष के अनुप्रस्थ स्फुटित होती हैं, जैसे – तुलसी (Ocimum sanctum)।
- लम्बवत् स्फुटन (Longitudinal Dehiscence) – इस प्रकार के परागकोष स्फुटन में पराग पालियाँ लम्बवत् स्फुटित होती हैं। जैसे- धतूरा (Daturd), कपास (Gossypium) आदि।
- छिद्रमय स्फुटन (Porous Dehiscence) – इसमें परागकोष के शीर्ष पर एक या दो छिद्र बन जाते हैं। जैसे- मकोय (Solanu mnigrum)।
- कपाटीय स्फुटन (Valvular Dehiscence) – इस प्रकार के स्फुटन में एक या दो या अधिक कपाट बन जाते हैं जिनसे परागकणों का प्रकीर्णन होता है; जैसे – बारबेरिस (Barberis)।