अधिकांश पादपों में रन्ध्र दो वृक्काकार कोशिकाओं से बना होता है। जिन्हें द्वार कोशिकाएँ (Guard cells) कहते हैं। द्वार कोशिकाएँ इस प्रकार व्यवस्थित होती हैं कि इनके बीच एक छिद्र बनता है जिसे रन्ध्रीय छिद्र (Stomotal pore) कहते हैं। द्वार कोशिकाओं की भीतरी भित्तियाँ जो रन्ध्रीय छिद्र की ओर होती है मोटी तथा बाहर की भित्तियाँ पतली होती हैं जिसके परिणामस्वरूप जब द्वार कोशिकाएँ स्फीति दशा में होती हैं या फूली हुयी (Turgid) होती हैं तो रन्ध्र खुल जाते हैं तथा श्लथ या पिचकी (Flaccid) होने पर रन्ध्र बन्द हो जाते हैं। स्फीति दशा में द्वार कोशिकाओं की बाह्य पतली भित्ति फूलकर बाहर की ओर काफी खिंच जाती है। इससे भीतरी मोटी भित्ति भी थोड़ी बाहर खिंचकर रन्ध्र को खोल देती है। स्लथ स्थिति में द्वार कोशिकाएँ पूर्ववत होकर रन्ध्र को बन्द कर देती हैं।
द्वार कोशिकाओं के चारों ओर स्थित कोशिकाएँ बाह्यत्वचा की अन्य कोशिकाओं से भिन्न होती हैं। इन्हें सहायक कोशिकाएँ (Subsidiary cells) कहते हैं। पत्तियों में रन्ध्रों की संख्या प्रति वर्ग सेमी 100 से 60,000 तक होती है।
